Book Title: Vaani Vyvahaar Me
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 28
________________ ४४ वाणी, व्यवहार में... वाणी, व्यवहार में... प्रश्नकर्ता : हम कुछ कहें तो उसे मन में खराब भी बहुत लगेगा न? दादाश्री : हाँ, वह तो सब खराब लगेगा। गलत हुआ हो तो बुरा लगेगा न। हिसाब चुकाना पड़ेगा, वह तो चुकाना ही पड़ेगा न। उसका दूसरा कोई उपाय ही नहीं है। प्रश्नकर्ता : अंकुश नहीं रहता, इसलिए वाणी द्वारा निकल जाता दादाश्री : हाँ, वह तो निकल जाता है। पर निकल जाए उस पर हमें प्रतिक्रमण करना है, बस दूसरा कुछ नहीं। पश्चाताप करके, और फिर से 'ऐसा नहीं करूँगा', ऐसा निश्चय करना चाहिए। फिर फरसत मिले तब उसके लिए बार-बार प्रतिक्रमण करते ही रहना, ताकि सब नरम पड़ जाए। जो-जो कठिन फाइलें हैं, उतनी ही नरम करनी है, सिर्फ दो-चार फाइलें कठिन होती हैं, अधिक नहीं होती न! प्रश्नकर्ता : अपनी इच्छा नहीं हो फिर भी क्लेश हो जाता है, वाणी खराब निकले तो क्या करें? दादाश्री : वह अंतिम स्टेप्स (सीढ़ियों) पर है। जब रास्ता पूरा होने आया हो न, तब हमें भाव नहीं हो तो भी गलत हो जाता है। तो हमें वहाँ पर क्या करना चाहिए कि पश्चाताप लें तो मिट जाएगा बस । गलत हो जाए तो इतना ही उपाय है, दूसरा कोई उपाय नहीं है। वह भी जब वह कार्य पूरा होने आया तब अंदर खराब करने का भाव नहीं होता है और खराब कार्य हो जाता है। नहीं तो वह कार्य अभी अधूरा होता है, हमें उल्टा करने का भाव भी होता है और उल्टा कार्य होता भी है, दोनों होते हैं। प्रश्नकर्ता : हेतु अच्छा है तो फिर प्रतिक्रमण किसलिए करें? दादाश्री : प्रतिक्रमण तो करना पड़ेगा, सामनेवाले को दुःख हुआ न। और व्यवहार में लोग कहेंगे न, देखो यह स्त्री कैसे पति को डाँटती है। फिर प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। जो आँख से दिखे, उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए। अंदर हेतु आपका सोने का हो, पर किस काम का? वह हेतु काम नहीं आएगा। हेतु शुद्ध सोने का हो तो भी हमें प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। भूल हुई कि प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। इन सभी महात्माओं की इच्छा है, अब जगत् कल्याण करने की भावना है। हेतु अच्छा है, पर तो भी नहीं चलेगा। प्रतिक्रमण तो पहले करना पड़ेगा। कपड़ों पर दाग़ पड़े तो धो देते हो न? वैसे ये कपड़े के ऊपर के दाग़ हैं। यह 'हमारा' टेपरिकॉर्डर बजता है, उसमें कुछ भूलचूक हो जाए तो हमें तुरन्त ही उसका पछतावा ले लेना होता है। नहीं तो नहीं चलता। टेपरिकॉर्डर की तरह निकलता है, यानी हमारी वाणी बिना मालिकी की है, तो भी हम पर जिम्मेदारी आती है। लोग तो कहेंगे न कि, 'पर साहब, टेप तो आपकी ही है न?' ऐसा कहेंगे या नहीं कहेंगे? क्या दसरे की टेप थी? इसलिए वे शब्द हमें धोने पड़ते हैं। नहीं बोल सकते उल्टे शब्द। प्रतिक्रमण तो अंतिम साइन्स है। इसलिए आपके साथ मझसे कठोरता से बोल लिया गया हो, आपको बहुत दुःख नहीं हुआ हो फिर भी मुझे समझ लेना चाहिए कि यह मुझसे कठोरता से बोला ही नहीं जा सकता। इसलिए इस ज्ञान के आधार पर अपनी भूल पता चलती है। इसलिए मुझे आपके नाम का प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। प्रश्नकर्ता : अर्थात् वाणी बोलते समय, हमें अपने व्यू पोइन्ट से करेक्ट लग रहा हो, पर सामनेवाले को उसके व्यू पोइन्ट से करेक्ट नहीं लग रहा हो तब? दादाश्री : वह सारी वाणी बिलकुल गलत है। सामनेवाले को फिट हो जाए, वह करेक्ट वाणी कहलाती है ! सामनेवाले को फिट हो जाए वैसी हमें वाणी बोलनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : हम सामनेवाले से कुछ कह दें, अपने मन में अंदर कुछ भी नहीं हो उसके बावजूद भी हम उसे कहें तो उसे ऐसा लगता है कि 'यह ठीक नहीं कह रहे हैं, गलत है।' तो उसे अतिक्रमण कहा जाता है?

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