Book Title: Vaani Vyvahaar Me
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 14
________________ वाणी, व्यवहार में... १५ आपको भीतर शांति देगा। आपके बोलने से सामनेवाले को शांति हो गई। आपको भी शांति। इसलिए यही सावधानी रखने की ज़रूरत है न! आप एक शब्द बोलो कि 'यह नालायक है', तो 'लायक' का वजन एक किलो होता है और 'नालायक' का वजन चालीस किलो होता है। इसलिए ‘लायक' बोलोगे उसके स्पंदन बहुत कम होंगे, कम हिलाएँगे, और 'नालायक' बोलोगे तो चालीस पाउन्ड हिलेगा। बोल बोले उसके परिणाम ! प्रश्नकर्ता: यानी चालीस पाउन्ड का पेमेन्ट खड़ा रहा। दादाश्री : छुटकारा ही नहीं न ! प्रश्नकर्ता: फिर हम ब्रेक कैसे लगाएँ? उसका उपाय क्या है? दादाश्री : 'यह वाणी गलत है' ऐसा लगे तब प्रतिदिन परिवर्तन होता जाता है। एक व्यक्ति से आप कहो कि 'आप झूठे हो।' तो अब 'झूठा' कहने के साथ ही तो इतना सारा साइन्स घेर लेता है भीतर, उसके पर्याय इतने सारे खड़े हो जाते हैं कि आपको दो घंटों तक तो उस पर प्रेम ही उत्पन्न नहीं होता। इसलिए शब्द बोला ही नहीं जाए तो उत्तम है और बोल लिया जाए तो प्रतिक्रमण करो। मन-वचन-काया के तमाम लेपायमान भाव, वे क्या होते हैं? वे चेतनभाव नहीं हैं। वे सारे प्राकृतिक भाव, जड़ के भाव हैं। लेपायमान भाव मतलब हमें लेपित नहीं होना हो तो भी वह लेपायमान कर देते हैं। इसलिए हम कहते हैं न कि, 'मन-वचन काया के तमाम लेपायमान भावों से मैं सर्वथा निर्लेप ही हूँ।' उन लेपायमान भावों ने पूरे जगत् को लेपायमान किया है और वे लेपायमान भाव वे सिर्फ प्रतिघोष ही हैं। और वे निर्जीव हैं वापिस । इसलिए आपको उनका सुनना नहीं चाहिए । पर वे यों ही चले जाएँ, वैसे भी नहीं हैं। वे शोर मचाते ही रहेंगे। तो उपाय क्या करोगे? हमें क्या करना पड़ेगा? उन अध्यवसन को बंद करने के लिए? 'वे तो मेरे उपकारी हैं' ऐसा-वैसा बोलना पड़ेगा। अब १६ वाणी, व्यवहार में... आप ऐसा बोलोगे तब वे उल्टे भाव सारे बंद हो जाएँगे, कि यह तो नई ही तरह का 'उपकारी' कहता है वापिस इसलिए फिर शांत हो जाएँगे ! आप कहो न, कि 'यह नुकसान हो जाए वैसा है।' इसलिए तुरन्त ही लेपायमान भाव तरह-तरह से शोर मचाएँगे, 'ऐसा हो जाएगा और वैसा हो जाएगा।' 'अरे भाई, आप बैठो न बाहर अभी, मैंने तो कहने को कह दिया, पर आप किसलिए शोर मचा रहे हो?' इसलिए हम कहें कि, 'नहीं, नहीं। वह तो लाभदायी है।' उसके बाद वे सारे भाव बैठ जाएँगे वापिस । ये टेपरिकार्डर और ट्रान्समीटर जैसे कितने ही साधन अभी उपलब्ध हो गए हैं। इससे बड़े-बड़े लोगों को भय लगा ही करता है कि कोई कुछ रेकॉर्ड कर लेगा तो? अब उसमें (टेप मशीन में) तो शब्द टेप हुए उतना ही है। पर यह मनुष्य की बोडी मन सारा ही टेप हो जाए वैसे हैं। उसका लोग जरा सा भी भय नहीं रखते हैं। यदि सामनेवाला नींद में हो और आप कहो कि, 'यह नालायक है' तो वह उस व्यक्ति के भीतर टेप हो गया। वह फिर उस व्यक्ति को फल देगा। इसलिए सोते हुए व्यक्ति के लिए भी नहीं बोलना चाहिए, एक अक्षर भी नहीं बोलना चाहिए। क्योंकि सारा टेप हो जाता है, वैसी यह मशीनरी है। बोलना हो तो अच्छा बोलना कि, 'साहब, आप बहुत अच्छे व्यक्ति हो।' अच्छा भाव रखना, तो उसका फल आपको सुख मिलेगा। पर उल्टा थोड़ा भी बोले, अंधेरे में भी बोले या अकेले में बोले, तो उसका फल कड़वा जहर जैसा आएगा। यह सब टेप ही हो जाएगा। इसलिए टेपिंग अच्छा करवाओ। जितना प्रेममय डीलिंग (व्यवहार) होगा, उतनी ही वाणी इस टेपरिकॉर्ड में पुसाए ऐसी है, उसका यश अच्छा मिलेगा। न्याय-अन्याय देखनेवाला तो बहुतों को गालियाँ देता है। वह तो देखने जैसा ही नहीं है। न्याय-अन्याय तो एक थर्मामीटर है जगत् का, कि किसका कितना बुखार उतर गया और कितना चढ़ा? ! जगत् कभी भी न्यायी बननेवाला नहीं है और अन्यायी भी हो जानेवाला नहीं है। यही का यही मिला-जुला खिचड़ा चलता ही रहेगा।

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