Book Title: Shilopadesh Mala
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala

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Page 15
________________ गुणसुंदरी अने पुण्यपालनी कथा. शमा रहेला ताराऊनी पेठे शोजती हती. ते नगरमांजेना प्रतापरूप रजकणो जाणे रत्नोज होय नी! एवो सिंहना समान पराक्रमवालो थरिकेसरी नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने अरिहंतना धर्मवाली, कामदेवरूप इस्तीने बंधन करवाने वालानस्तंनरूप अने अखंडित सौजाग्यवाली कमलमाला नामे पट्टराणी हती. धर्मनेविषे प्रीतिवाला ते दंपती (स्त्री पुरुष) पुत्रने माटे देव देवीउनी बहु मानता करतां हतां, जेथी तेमने काले करीने शेकडो पुत्रथी पण अधिक प्रेमवाली एक पुत्री थश्. थरिकेसरी राजाए पोताना श्रात्माने धन्य मानतां ए पुत्रीनो म्होटो जन्मोत्सव करीने गुणसुंदरी एवं यथार्थ नाम पाड्यु. पठी कल्पवेलनी पेठे दिवसे दिवसे वृद्धि पामती ए राजसुता, चंडकलानी पेठे सर्व मनुष्योने अत्यंत वहाली थइ. अनुक्रमे ए राजपुत्रीना शरीररूप वननेविषे पूर्ण एवा उन्मादरूप क्याराथी सिंचन थएबुं अने हावनावरूप लची रहेली बायावालुं यौवनावस्थारूप वृक्ष वृद्धि पाम्यु.. एक दिवस पूर्णकलाउंना अभ्यासवाली अने सर्व अंगनेविषे सुशोजित अलंकारोने धारण करनारी ए राजकुमारी पोतानी मातानी श्राझाथी पोताना पिताना चरणने प्रणाम करवामाटे सन्नामां गश्. चोसठ कलाथी पूर्ण जाणे साक्षात् सरखती पोतेज होयनी ! एवी अने विनयथी नम्र एवी ते पुत्रीने अरिकेसरी राजाए पोताना खोलामा बेसारी. पड़ी उन्मतशृंगारना एक तरंगरूप पोतानी सजाने जोतो अरिकेसरी राजा, मदोन्मत्त हस्तिथी पेठे जगत्ने तृणसमान गणतो पोताना मनमां विचार करवा लाग्यो के, "श्रा म्हारी सना देवसना बे, चित समृद्धिवाला सेवको देवतारूप , लक्ष्मी पण जोशए तेटली बे, अने हुं पोते अरूप . तो हवे म्हाराथी वर्गने विषे वधारे झुंडे.” श्राम गर्वरूप अजीर्णथी पूर्ण थएला उदरवाला ए राजाए दंडथी ताडन करेला सर्पनी पेठे (लोकोने) विषरूप वचन कह्यां, “ हे लोको! तमे पृथ्वीने विषे रह्या उतां, देवलोकनी क्रीडाथी श्राद् दैवने स्वाधिन एवं पूर्ण सुख जोगवो बे, ते कोना प्रसादथी ?" राजानां धावां वचन सांजली थाकुल व्याकुल थएला ते सर्वे सेवको, शियालनी पेठे एकी वखते राजाने कदेवा लाग्या के, “हे खामि

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