Book Title: Shilopadesh Mala
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala
View full book text
________________
ग्रंथारंभ.
Ա
मूलने उखेडी नाखवाने खीला समान श्रने मोक्षसुखने मेलवनार एवा निर्मल शीलवतने तमे निरंतर पालो. ॥ २॥
काव्यनी अंदर केटलांक वचनो विशेष उपदेश श्रापवाने योग्य होवाथी तेने फरीथी कहेवामां पण पुनरुक्ति दोष लागतो नथी. कह्युं वे केसझायप्राणतवो, सहेसु जवएसु थुश्पयाणेसु ॥ संतगुण कित्तणेसु य, न हुति पुणरुत्तदोसा ॥ १ ॥
मूल ग्रंथकारे या प्रथमना काव्यमां पूर्वार्द्धने विषे विघ्ननी निवृत्तिने माटे इष्टदेवताने नमस्कार करी उत्तरार्द्धने विषे ग्रंथनो विषय कह्यो बे. मां बे प्रकारनो संबंध ठे. वाच्य ाने वाचक, तेमां वाच्य प्रकरणार्थ वाचक प्रकरण बे. वली शीलोपदेश श्रनिधेय (कदेवायोग्य वस्तुतुं. स्वरूप) ने विवेक करी शालारूप प्रयोजन दर्शाव्यं बे, ते बे प्रकारे बे एक कर्त्ता ने बीजुं सांजलनारने, ते पण पर अने पर एवा नेदथी प्रकारे बे. मां कर्त्ताने पर एटले मोक्षप्राप्ति अने अपर ए जव्यजीवो उपर अनुग्रह बे. सांजलनारने पण पर ते मोक्षप्राप्ति अने पर ते प्रकरना अर्थं जाणपणुं बे. वली ग्रंथकारे बीजा तीर्थंकरोने नमस्कार न करता फक्त नेमिनाथने नमस्कार करवानुं कारण एबे के, ग्रंथमां शीलनुं प्राधान्यपणुं प्रगट कर बे.
हवे शील पालवाथी या लोक परलोकमां जे फल थाय बे, ते कड़े बे. लक्ष्मीः यशः प्रतापः माहात्म्यं अरोग्यता गुणसमृद्धिः लच्ची जैसे पर्यावो, माढप्य मरोगया गुणसंमिश्री ॥ सकलसमीहितसिद्धिः शीलात् इह aas सयलसमी दियसिद्धी सीलान इदै नैवेवि नैवेवि परलोकेsपि खलु नरसुरसमृद्धिं उपजुज्य परेलोएवि है नरसुँरसमिद्धि- मुर्वसुंजिकण त्रिभुवनप्रणमितचरणाः अणाः प्राप्तुवंति सिद्धिसुखं तिदुच्प्रणर्पेणमियचरणा, अरिणी पीवंति सिद्धिदं ॥४॥ युग्मम्॥
नवेत् नवे ॥ ३ ॥ शीलनराः
सीलेंनरा ॥
* दान, तप ने जावना ए त्रष्ये जेटलो वखत पाल्यां होय तटेलो वखत फल पवावालां थाय बे. ने शीलत्रत बहु वखत पाट्या बतां एक वखत खंकन करवाथी सघलुखंकन थाय बे. माटे निरंतर शील पालकुं. कह्युं बे के, वनंति नामजारा, नच्चिय वनंति वीसमंतेहिं ॥ सीखजरो वोढबो, जावज्जीवं छावी सामो ॥१॥ ( + परमपयं ) इति पाठांतरम्.

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 456