Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 16
________________ करता, आदमी को अगर घाटा लग जाता, तो घाटा दूर करने के लिए प्रभु को बुलाता। यदि किसी के सन्तान पैदा न होती तो भी ईश्वर का आह्वान करता, इस तरह मनुष्य ने ईश्वर को परेशान कर दिया। भगवान ने बैकुण्ठ छोड़ा और सोचा कि कहीं ओर चला जाता हूँ, सो भगवान आए और गुफाओं में बैठ गए। मगर, लोगों ने संन्यास धारण करना शुरू कर दिया, लोग गुफाओं में जाने लग गए। भगवान को लगा कि लोग उन्हें यहाँ भी नहीं छोड़ रहे। सो वे पर्वतों के बीच चले गए, वहाँ भी लोग पहुँचने लग गए। पहले तो लोग पैदल ही यात्रा पर जाते थे, किन्तु आरामतलब होने के कारण मनुष्य फिर कारों और बसों द्वारा वहाँ पहुँचने लग गए और जब से ये रोज-ब-रोज बिना ज़रूरत की कारें पहुँचने लगीं, तभी से वहाँ से भगवान जी लुप्त हो गए। ईश्वर को लगा कि लोग परेशान करने लग गए हैं, ये लोग आते हैं और एक नारियल चढ़ा कर महादेव जी और महावीर जी को राजी करना चाहते हैं। यह उचित नहीं है। ये प्रभु-दर्शन के काबिल नहीं हैं। सो ईश्वर वहाँ से भी लुप्त हो गए और नदियों में चले गए। ईश्वर ने सोचा नदियों के जल में छिप जाता हूँ, मगर लोगों ने वहाँ भी जा कर अपने अस्थिकलश विसर्जित करने शुरू कर दिए कि जाते हैं और अपने पाप वहाँ धो आते हैं। भगवान को लगा कि ये मनुष्य मुझे कहीं भी चैन नहीं लेने देता है। बार-बार मेरी समाधि में खलल डालता है। याद करना, बुलाना और पहुँचना शुरू कर देता है। ईश्वर चिंतित हुए। जब भी कोई चिन्तामग्न हो तो चिंता से मुक्त होने के लिए वह चिन्तन करे; मन को अगर दिशा देनी हो तो मनन करें। ईश्वर ने भी दो पल के लिए अपनी आँखें बंद की और चिन्तन किया, मनन किया और तब उन्हें प्रतीत हुआ कि उन्हें कहाँ रहना चाहिए। और तब ईश्वर, सीधे वहाँ चले आए; क्या आपको पता है तब ईश्वर ने अपने रहने के लिए कौन-सी जगह ढूंढ़ी? आप लोगों का चयन किया, अपने लोगों का चयन किया और ये जो स्वयं ईश्वर की बनाई हुई रचनाएँ हैं उन रचनाओं में आकर रचनाकार समाहित हो गया। निर्णय कीजिए- शांति चाहिए या सफलता? १५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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