Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 53
________________ लगना हुआ । नहीं तो इतने साल तो एक्सीडेंट न हुआ, न तीर लगा, न कोई तक़लीफ हुई । वेदना का तुम्हारे जीवन में उदय आना था, इसलिए ऐसा घटित हो गया । छुटके के तीन जहाज, पर ऐसा समुद्री तूफान उमड़ कर आया कि कतारबद्ध चल रहे तीनों जहाज एक साथ डूब गए। अब अगर तीनों जहाज एक साथ डूब जाए तो आप सोच सकते हैं कि उस आदमी की हालत क्या हुई होगी। वो तो एक तरह से विक्षिप्त जैसा हो गया कि अब मैं जीऊँगा तो जीऊँगा कैसे, कैसे लेनदारों को चुकाऊँगा । बड़े ही विचित्र भँवर में फँस गया । सागर के किनारे पर अपने टूटे-फूटे हुए जहाजों के टुकड़ों को देखकर वह रो पड़ा, टूट सा गया। दिल से टूट पड़ा कि तभी उसे अपने पिता की याद आई। उन्होंने कहा था कि बेटा जब तुम्हारे सामने ऐसी कोई नौबत आ जाए कि जिसका सामना तुम न कर पाओ तो इस अंगूठी का उपयोग करना । और उसने तब अंगूठी देखी। उसने देखा कि अंगूठी चमक रही है। उसने अंगूठी को पत्थर पर घिसा, पर कुछ पकड़ में नहीं आ रहा है। पत्थर पर घिसा । घिसता रहा । घिसता रहा । और घिसते घिसते उसने देखा कि अन्दर से कुछ लिखा हुआ नजर आने लगा । ध्यान से देखा । पढ़ न पाया। मैग्नीफाइंग ग्लास लाकर उससे पढ़ने लगा और चौंक पड़ा। - उसमें लिखा हुआ था - 'मेरे प्यारे बेटे, चिन्ता मत कर। यह वक्त भी बीत जाएगा। दस टू विल पास। यह भी बीत जाएगा ।' उसने वह मंत्र पढ़ा । इस मंत्र ने उसे ढाढस दिया। उसने एक लम्बी नि:श्वास छोड़ी और उन टुकड़ों को छोड़कर वहीं से घर की तरफ लौट आया । तब कहते हैं उस व्यक्ति ने जीने का वह राज समझ लिया कि जब वह न रहा तो यह भी नहीं रहेगा । जब यह न रहेगा तो कल वाला कौनसा रह पाएगा । जिस व्यक्ति ने अपनी ज़िन्दगी में यह पाठ पढ़ लिया, उसके भीतर जिस तत्त्व का जन्म होता है उसी का नाम है शांति, उसी का नाम है संतोष । उसी का नाम है जीवन की समझ । वह सम्हला । उसने पूरे आत्मविश्वास के शांति पाने का सरल रास्ता ५२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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