Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 59
________________ जाऊँ। अच्छा हुआ कोई मुझे न्यौता देने आ गया। संत श्रोण उस महिला के घर चला गया। जैसे ही भीतर पहुँचा, मन में आया, भोजन जितना जल्दी मिल जाए, उतना अच्छा। तभी गृहस्वामिनी ने उससे कहा, 'आइए भन्ते ! आपके लिए भोजन तैयार है । ग्रहण करने की कृपा कीजिए।' श्रोण जब भोजन करके तृप्त हो गया, तो तभी मन में नया विचार उठने लगा। विचारधाराओं का अन्तहीन सिलसिला होता है पर यह ध्यान रखिएगा कि कोई भी विचार अपना विचार नहीं होता। हर विचार एक धारा है, मन के सरोवर की एक लहर भर हुआ करता है। लहर का अनुसरण करोगे तो लहर बहाकर ले जाएगी और लहर के केवल साक्षी रहोगे तो लहर उठेगी और आगे बह जाएगी, तुम वहीं के वहीं स्थिरचित्त रहने में सफल हो जाओगे। लहर के साथ बह गए तो वह बहा कर ले जाएगी पर अगर किनारे पर खड़े रहे तो लहर आगे बढ़ जाती है मगर तुम किनारे के बरगद हो जाते हो। लहरों का उठना मन की प्रकृति है। लहरों का गुजरना भी मन की एक प्रवृत्ति है, लेकिन अपने में स्थिरचित्त होना, स्थितप्रज्ञ होना, अपनी अन्तरआत्मा में अपने चित्त को स्थिर बनाए रखना ही सक्षित्व का ध्यान और ध्यान का सक्षित्व है। संत श्रोण भोजन करते-करते ही सोच रहा है खाना तो बड़ा अच्छा खिलाया इस गृहिणी ने। अब थोड़ा आराम करने को मिल जाए तो बड़ा अच्छा हो। श्रोण अभी तक ऐसा सोच ही रहा था कि मालकिन आई और आकर कहने लगी, भन्ते! आपके लिए शय्या तैयार है। पधारिए और विश्राम कर लीजिए।' उसे सन्देह हुआ, यह महिला कहीं मेरे भीतर की तरंग को पकड़ तो नहीं रही है ! पर फिर लगा कि हो सकता है मेरे मन का ऐसे ही बहम हो। आखिर हर आदमी को खाना खाने के बाद तो सोने को चाहिए ही। इसने भी ऐसे ही सहज में कह दिया होगा और सोने के लिए जैसे ही भाव उठने लगे तो जब पलंग की तरफ बढ़ने लगा तो वहाँ पर चटाई बिछाई हुई थी उस चटाई को देखकर उसके मन में भाव उठने लगे- आज संत बन गया सो चटाई पर ५८ शांति पाने का सरल रास्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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