Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 31
________________ वीणा के इन्हीं तारों से जीवन की प्रेरणा लेते हुए निवेदन करूँगा कि हम भी अपने जीवन की वीणा के तारों को न तो इतना कसें कि ये तार किसी कौए की कांव-कांव बन जाएँ और न ही इतना ढीला छोड़ें कि ये किसी गधे की ढेंचू-ढेंचू हो जाए। साधो, वीणा के तारों को साधो । दोस्ती करो, अपने आप से दोस्ती करो। मंगल मैत्री के तार जोड़ो अपने ही अंतर्मन से और इस तरह शांति और आनंद के संगीत का सृजन करो। लुत्फ उठाओ। स्वर्ग अगर कहीं है तो व्यक्ति के अपने ही अन्तर्मन के सुख और शांति में है और नरक भी अगर कहीं है तो वह भी आदमी के अशान्त, उद्विग्न, उत्तेजित अन्तर्मन में छिपा हुआ है। ऐसे किसी स्वर्ग में ज्यादा विश्वास मत रखो जो कि किसी आकाश में माना जाता है। तुम ऐसे स्वर्ग का सृजन करो जिसके फल तुम आज पा सको और जिसकी छाया सड़क चलते राहगीर को भी मिल सके। स्वयं को ऐसा बनाओ जो खुद भी हरा-भरा रहे। पथिकों को भी छाया दे और कोई पंछी भी उधर से गुजरे तो आपकी डालियों पर बैठकर थोड़ी देर गुटर-गूं कर सके, गीत गा सके। आखिर, पंछी ऐसे किसी पेड़ पर नहीं बैठा करते जिसके नीचे आग सुलगती हो, क्रोध-उत्तेजना के साँप रहते हों। अपने में देखोगे तो पाओगे कि जब-जब मैंने क्रोध किया तब-तब मैं अशान्त हुआ, जब-जब मैं अशान्त हुआ तब-तब मैंने अपने भीतर के सुख को खण्डित होते हुए देखा और जब-जब भीतर का सुख खण्डित हुआ, तब-तब उत्तेजित, आक्रोशित और चिन्तित हुआ। और इन्हीं सब चीजों का परिणाम था नरक। ____ कल जब मैंने आप लोगों से पूछा कि आपने नरक देखा है? सबका उत्तर नेगेटिव था। पर मैं कहना चाहूँगा कि मैंने नरक देखा है और न केवल नरक देखा है वरन् स्वर्ग भी देखा है और दोनों के बीच रहने वाले भेद को भी समझा है। दोनों के बीच रहने वाले भेद को समझने के बाद ही यह कहता हूँ कि अगर आदमी को जीवन जीने की कला आ जाए, वीणा के तारों को साधने ३० शांति पाने का सरल रास्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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