Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ छोड़ो। चढ़ा तो मैं तुम पर रहा हूँ। मैं तुम्हें सुख देता हूँ तो तुम्हें सुख मिल रहा है। मैं तुम्हें श्वास देता हूँ तो तुम्हें श्वास मिल रही है। मैं तुम्हें तुम्हारे जीवन की व्यवस्थाएँ दे रहा हूँ तो तुम्हें तुम्हारी व्यवस्थाएँ मिल रही हैं। तुम तो केवल अपने आपको मुझे दे दो, तुम केवल अपने हृदय के दो पुष्प दे दो। मैं इतने में ही आनन्दित हूँ, प्रमुदित हूँ, कृपावंत हूँ। खुद को सौंप दो प्रभु को और फिर मुस्कुराना शुरू करो- जीवन के हर कदम पर, हर क्षेत्र में, हर दिशा और हर हाल में। आप अगर इस शिविर में सात सौ लोग हैं, और ये सात सौ लोग भी मुस्कुराने की कला सीख जाते हैं, तो निश्चय ही यह सारा शहर हँसता-मुस्कुराता गुलाब का फूल बन जाएगा। मेरे लिए इतना काफी है। ४० शांति पाने का सरल रास्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98