Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 76
________________ भी जीतने की सजगता और सचेतनता बनाए रखेंगे तो मेरे देखे आदमी धीरेधीरे अपने भीतर के घेरों से मुक्त होता जाता है। मुक्त किसी और से नहीं होना है हमें। अपने आप से ही हमें मुक्त होना है। मुझे मुझसे ही मुक्त होना है। हमारे भीतर व्याप्त जो घेरे हैं, संस्कारों के, चित्त की प्रकृतियों के, वृत्तियों के, हमें जन्म-जन्मान्तर के उन घेरों से ही मुक्त होना है। मुक्ति मरने के बाद नहीं मिलती। वो केवल सांत्वना है। वे कहते हैं कि मरने के बाद मुक्ति मिलती है। मुक्ति वो है जिसका रसास्वादन तुम खुद करते हो, जीते जी करते हो। अपने हर पल, अपने आगे-पीछे, इर्द-गिर्द अनुभव करते हो। मुक्ति का वह रसास्वादन तभी होगा जब हम अपने घेरों से मुक्त होंगे। हम अपने-अपने घरों को समझें। किसी के भीतर क्रोध का घेरा होगा, तो किसी के भीतर वासना का। कोई मोह के घेरे में जकड़ा है, तो कोई अहंकार के घेरे में। सबके अपने-अपने घेरे हैं, अपनी-अपनी मज़बूरियाँ हैं। ये घेरे ही हमारी आन्तरिक लेश्याएँ हैं। आप अपने घेरों को समझें, और मुक्त होने का प्रबन्ध करें। कहते हैं : महारानी अहिल्याबाई की स्तुति में किसी विद्वान पंडित ने एक महाकाव्य की रचना की। इस ग्रन्थ में रानी के महान व्यक्तित्व और कृतित्व की यशोगाथा गाई गई। जब पंडित ने उस महाकाव्य को रानी के समक्ष राजदरबार को सुनाया तो जनसामान्य काव्य सुनकर वाह-वाह कर उठा। अहिल्याबाई ने काव्य सुनकर अपने मन को पढ़ा और कहा, पंडित जी! मैं तो एक साधारण स्त्री हूँ। यदि आप मेरी जगह प्रभु की स्तुति में यह महाकाव्य रचते तो वह अमर हो जाता। उससे रचने वाले का और सुनने वाले का– दोनों का कल्याण होता।' कहते हैं, तब रानी ने पंडित को तो इस परिश्रम के लिए पुरस्कार दिया, पर मन में अहंभाव का विस्तार न हो जाए यह सोचकर उन्होंने उस ध्यान से जानिए स्वयं को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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