Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 56
________________ प्रदान करें कि मैं तब तक, ध्यान का सघन और निरन्तर प्रयोग करूँगा जब तक कि मैं अपने भीतर अपनी सचेतनता को न साध लूँ, अपने में उतरकर अपनी वास्तविक शांति को उपलब्ध न कर लूँ, अपने में अपनी आत्मशक्ति, अपने आत्म-स्वरूप का बोध न प्राप्त कर लूँ तब तक मैं लगा रहूँगा। यह धुन ही, यह लगन ही हमें साईं से मिलन करवाएगी। हमारे अन्तर्मन की यह सुदृढ़ता हमें देह-भाव से ऊपर कर देती है और यही विदेह-अवस्था हमें हमारी साधना को सफलता दिया करती है। मेरी जो बातें पल्ले पड़ गई हैं, गाँठ बाँध लीजिए। 'हीरा पायो गाँठ गठियायो।' अपने-अपने पल्ले में गाँठ बाँध लें। बाकी की बातें शून्य आकाश में विलीन हो जाएँ। कुछ देर के लिए पलकों को झुका लीजिए और ध्यान की दशा से गुजरिए। .....आती-जाती साँसों पर ध्यान दीजिए। .....यह बोध निरन्तर बनाते रहिए कि मैं अपनी प्रत्येक आती-जाती साँस का अनुभव कर रहा हूँ।......सावचेत श्वसन-क्रिया! .....बोध रखिए कि आती हुई श्वास का आनन्द ले रहा हूँ और भीतर में मुस्करा रहा हूँ। .....जाती हुई श्वासों का अनुभव कर रहा हूँ और अन्तर्मन को शांतिमय बना रहा हूँ। जन्म-जन्मान्तर के संस्कार भरे पड़े हैं, हम सब लोगों के चित्त में। भोगों के, विकारों के, तनावों के। ......पहले साँसों का अनुभव कर रहा था, अब अपने अन्तर्मन और दिमाग का सचेतन अनुभव कर रहा हूँ। .....पूर्ण सचेतनता। .....अन्तर्मन को सहज शांतिमय बना रहा हूँ। .....पूर्ण आत्मभाव लिए हुए अपने अन्तर्मन को सहज शांतिमय बनाते रहिए। चित्त में यदि भटकाव लग रहा हो तो शांत गहरी साँसों का अनुभव करने लगें। साँस को 'स्लो एंड डीप' धीमी और गहरी करते रहें। .....हर विचार एक तरंग है। विचारों के साथ 'इन्वोल्व' न हों। ....क्षण-क्षण यह धारणा रखिए कि मैं स्वयं को शांतिमय बना रहा हूँ। .....मैं अपने आन्तरिक अस्तित्व को जान रहा हूँ, अनुभव और अनुपश्यना कर रहा हूँ। .....अपनेअपने वास्तविक सत्य का अनुभव करते रहें। सहजता को बनाइए समाधि का साधन ५५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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