Book Title: Padhamvaggo
Author(s): Nemivigyan Kastursuri Gyanmandir
Publisher: Nemivigyan Kastursuri Gyanmandir
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हेमचंदसूरी तओ विहरमाणो कमेण अणहिल्लपुरं समागच्छत्था । एगया सिद्धराओ भूवई गयवरारूढो रायवाडिगाए वियरंतो रायपहम्मि विवणीसंठियं हेमचंद पहुं पेक्खिऊणं तम्मुहाओ सुभासिअं सुणिउं पेरेइ, तइया सूरिणा वृत्तं - 'हे सिद्धराय ! नीसंकं गयरायं चलावेसु, दिसिगया सितु, तेहि किं ? जओ पुढवी तुमए च्चिय उद्धरिया' एवं 'सुहासिअं सोच्चा पसन्नहियओ सो नरवई रायसहाए आगमण पत्थण कासी ।
एगया सिद्धराएण मालवदेसविजएण तओ आणीओ भोयवागरणपमुहगंथभंडारो सिरिहेमचंदरस दंसिओ | सिद्धरायस्स निद्देसेण हेमचंदपहुणा 'सिद्ध हेम' त्ति अभिणवं वागरणं सुत्त उणाइ - घाउपाढ- गणपाढ- लिंगाणुसासणनामपंचगरूवं निम्मविअं । तस्स य अट्ठज्झाया । तस्स बागरणस्स विवरणाए हिन्नासो महावुत्ती लहुवुत्ती य निम्मियाओ । विसेसओ नाममालासेसनाममाला-अणेगट्ठनाममाला-देसियनाममाला निघंटु-छंदोणुसासण - कव्वाणुसासण - तिसट्ठिसलागा. पुरिसचरिय-सत्तसंघाण महाकव्त्र - दुविहदुगासयकव पमाणमीमंसा - जोगसत्थपमुहा विविहविसयगंथा विरइयाय । ते य विउसगणेहिं पमाणीकया ।
पंडियपवर भागवयायरियस्स इंदजालियदेवबोहस्स दुक्खियावत्थाए तेण सूरिणा सहेज्जं कर्यं ।
सिद्धराय नरवई पुत्तस्साऽभावेण सिरिहेमचंदपहुणा सद्धि तित्थजत्ताए निग्गओ । पुवं सिद्धगिरिम्मि जत्तं काऊ तित्थस्स पूआइ दुवालसगामे दाऊणं रेवयायलतित्थम्मि समागओ । तस्थ नियसज्जणमंतिकारियजिष्णुद्धारम्मि सत्तावीसलक्ख सुवण्णदम्मवयं सोच्चा तं च लाहं सयं घेत्तणं सो बहुयं पसंसिओ । तओ सिरिहेमचंद सूरिसहिओ सो सिद्धराओ सोमेसरपट्टणम्मि उवागभ । तत्थ महादाणाईं दाऊणं अच्चम्भुयपूअं च काऊणं सो अंबिगादेवीए अहिट्टिए कोडिणारनयरम्मि अबिंगादेवीदंसणटुं समागओ । पुत्तट्टं आराहियाए अबिगादेवीए सिद्धरायस्स पुत्ताभावो निधिट्ठो । तस्स य उत्तराहिगारी पेइय-भाउ - देवपसायरस पोतो तिहुवणपालरस पुत्तो कुमारवालो होहि त्ति देवीवयणं सोच्चा पुव्वकम्मदोसेण तम्मि वेरं वइ । तस्स वहाइ विवि उवा चिंते । तं वियाणिऊण कुमारवालो वेसपरावट्टणं काऊणं अच्चतगूढठाणे वसिउं लग्गो ।
एगया सिरिमचंदे अणहिल्लपुरनयरम्मि सिद्धरायभएण भमंतो सो रक्खिओ । पुणो वि एगया थंभतित्थम्मि सावगदुवारेण बत्तीस लक्खदम्मे दाविऊण तस्स सहेज्जं दिण्णं ।
विक्कमस्स गह- नंद-रुद (१९९९) वरिसम्मि सिद्धराए पर लोगं गए कुमारवालो महाराओ जाओ । सो विवत्तिसमए सहेज्जकारगे सव्वे आहविऊण अईव सम्माणं तेसिं कासी ।
१ पहावगचरियतग्गयसिरिहेमचंदचरिए एयं सुहासिअं
कारय प्रसरं सिद्ध ! हस्तिराजमशङ्कितम् । श्रस्यन्तु दिग्गजाः किं तैर्भूस्त्वयैवोद्धृता यतः ॥६७॥
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