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( १६ )
अलवर यात्रा के प्रसंग में, एकबार पण्डितरत्न श्रीप्रेमचन्द्र जी महाराज और श्री अखिलेशचन्द्र जी महाराज ने एक बार जिक्र किया कि "नय कर्णिका' में विनयविजय जी ने सात नयाँ का अत्यन्त सरल पद्धति से बड़ा सुन्दर निरूपण किया है। यदि इस कृति का सविवेचन हिन्दी रूपान्तर हो जाय, तो नयज्ञान के पिपासु हिन्दी पाठकों का पर्याप्त उपकार हो सकता है । उनके इस प्रेरणास्पद कथन से कई बार 'नय-कर्णिका' पर कुछ लिखने का विचार मन में आया और गया, और अन्ततः अन्तर में पड़े उस प्रेरणात्मक बीज ने अंकुर का रूप ले ही लिया, जो पाठकों के सामने प्रस्तुत है । मूल कृति के अनुसार विवेचन में सरल और संक्षिप्त दृष्टिकोण को ही ध्यान में रखा गया है। विवेचन में, श्री मोहनलाल मेहता एम० ए०, का" जैन दर्शन में नयवाद" नामक निबन्ध काफी सहायक रहा है, अतः उनके प्रति आभार प्रदर्शन करना हम अपना कर्तव्य समझते हैं ।
आशा है, हमारा यह लघु प्रयास पाठकों के अन्तर्मन में नय-ज्ञान के प्रति जिज्ञासात्मक भावना की तीव्र लहर पैदा कर सकेगा ।
जैन भवन
लोहामंडी,
आगरा ।
६-५-५५
- सुरेश मुनि
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