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वस्तु का उभयात्मक रूप
अर्थाः सर्वेऽपि सामान्य, विशेषोभयात्मकाः । सामान्यं तत्र जात्यादि, विशेषाश्च विभेदकाः॥३॥
अर्थ
जीव. अजीव आदि सब पदार्थ सामान्य एवं विशेषउभयधर्मात्मक हैं। उन दोनों में जाति आदि, पदार्थ का सामान्य धर्म है और जाति में भी भेद करने वाले विशेष धर्म हैं।
विवेचन विश्व के समस्त पदार्थों में सामान्य और विशेष-ये दो धर्म होते हैं । जैसे रुपये के दो बाजू होते हैं, वैसे ही प्रत्येक वस्तु के भी दो पहलू होते हैं, एक सामान्य और दूसरा विशेष । जैसे रुपये का एक बाजू दूसरे को छोड़कर नहीं रह सकता, ऐसे हो पदार्थ का सामान्य धर्म विशेष को छोड़ कर नहीं रह सकता, और विशेष सामान्य के विना नहीं रह सकता । अतः प्रत्येक पदार्थ सामान्य-विशेषात्मक उभयरूप है। एक रूप मानने पर दोनों का ही अभाव हो जाता है । इसलिए आचार्यों ने पदार्थ को सामान्यविशेषात्मक
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