Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -अधिक प्रसिद्ध है, अतः नयकर्णिकाकार ने भी उसी आगमपरम्परा का अनुसरण करते हुए मूल में ही नय के सात भेद मानकर इस कारिका में उनकी संख्या और उनके नाम का निर्देश किया है। नय का अर्थ है विचारों की मीमांसा अथवा विचारों का वर्गीकरण । संसार का ऐसा कोई भी वैयक्तिक, सामाजिक अथवा आध्यात्मिक विचार नहीं, जो इन सात नयों की सीमा से बाहर हो । संसार की यावन्मात्र विचार- सरणियों का समावेश इन सात नयों में ही हो जाता है, अतः आचार्यों ने इन सात नयों के अतिरिक्त आठवाँ कोई नय नहीं माना है । For Private And Personal Use Only

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