Book Title: Naykarnika
Author(s): Vinayvijay, Sureshchandra Shastri
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Naam Ane नय के भेद नैगमः संग्रहश्चैव, व्यवहारजु सूत्र कौ I शब्दः समभिरूढैवं भूतौ चेति नयाः स्मृताः॥ २ ॥ अर्थ नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत - ये सात नय कहे गये हैं । विवेचन प्रस्तुत कारिका में नयों का नाम और संख्या का निर्देश किया गया है। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने कहा है कि " वचन के जितने भी प्रकार या मार्ग हो सकते हैं नय के भी उतने ही भेद हैं । वे पर - सिद्धान्त रूप हैं, और वे सब मिलकर जिन शासन रूप हैं fa जावं तो वयरणपहा, ते चैव य परसमया, सम्मत्तं तातो वा नया विसद्दाओ । समुदिया सव्वे ॥ - विशेषावश्यकभाष्य २२६५ -- इस कथन के आधार पर नय के अनन्त प्रकार हो सकते हैं । इन अनन्त भेदों का प्रतिपादन करना हमारी शक्ति की For Private And Personal Use Only

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