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सामान्य धर्म है, और नीम, आम उसके विशेष धर्म हैं। परन्तु, वे नीम, आम, बबूल आदि विशेष, वनस्पति से पृथक कहीं भी देखने में नहीं आते, अतः सामान्य धर्म ही मानना युक्ति-संगत है।
पद्य के उत्तरार्ध में कहा गया है कि जैसे अंगुली और नाखून हाथ से अलग नहीं हैं, प्रत्युत हाथ के ही अन्तर्भूत हैं । ऐसे ही फल, वृक्ष आदि विशेष भी वनस्पतिसामान्य में ही समाविष्ट होजाते हैं, अलग रूप में उनका अस्तित्व कहीं नजर नहीं आता ।
वृक्ष, लता आदि सब विशेष, वनस्पति-सामान्यरून ही हैं, यह सिद्ध करते हुए श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने भी कहा है कि "श्राम, यह वनस्पति-सामान्य है। कारण, वह मूल, स्कन्ध, छाल, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और बीजवाला है । जो मूल, स्कन्ध आदि वाला है, वह सब वनस्पतिसामान्यरूप ही है, जैसे आमों का समूह । श्राम, यह भी मूल, स्कन्धादिवाला है, अतः वह वनस्पति सामान्यरूप ही सिद्ध होता है, अलग विशेषरूप में नहीं"चूओ वणस्सइ च्चिय, मूलाइगुणोत्ति तस्सममूहो व्य । गुम्मादो वि एवं, सव्वे न वणस्सइ-विसिहा ॥"
- विशेषा०, २२१०
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