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24 :: मूकमाटी-मीमांसा
लोकतन्त्र का नीड़ सुरक्षित रह सकेगा (पृ. १७३) । कथ्य और तथ्य
'मूकमाटी' का दर्शन सृजनशील दर्शन है। उसकी सृजनशीलता में उपादान और निमित्त कारण समन्वित रूप से उत्तरदायी हैं। यह उत्तरदायित्व विषयवस्तु के रूप में चार भागों में विभाजित है। प्रथम भाग में मिट्टी का संसर्ग कुम्हार से होता है । द्वितीय भाग में अहं का विसर्जन और समर्पण है । तृतीय भाग समर्पित के सामने आगत विविध परीक्षाओं से सम्बद्ध है तथा चतुर्थ भाग वर्गातीत अपवर्ग की प्राप्ति पर आधारित है । इस प्रकार समूचा महाकाव्य दर्शन से ओतप्रोत है । ये चारों भाग क्रमश: चतुष्पुरुषार्थ तथा चतुराश्रम-व्यवस्था के प्रतीक माने जा सकते हैं। कवि ने इनमें जीवन की अनेक परछाइयों को नज़दीक से देखा है और उनकी बहुरंगी प्रतिकृतियों को अनुभूति की पाँखों में संजोया है।
'मूकमाटी' की प्रस्तुत विषयवस्तु और उसकी अभिव्यंजना की स्थिति में सुन्दर तारतम्य दिखाई देता है। विषय बिलकुल नया है और उसकी अभिव्यक्ति भी उतनी ही नई है । कहीं भी कृत्रिम सृजनशीलता दिखाई नहीं देती। आधुनिक कविता में विषयों का आधिक्य और वस्तुगत वैविध्य अधिक है जिससे उसमें वह गम्भीरता नहीं आ पाती जो एकनिष्ठ काव्य में सम्भव है। प्रकति-चित्रण में परम्परा के साथ नवीनता का समावेश मिलता है पर कवियों ने उसका उपयोग अपनी शृंगारिक भावनाओं के परिपोषण में ही अधिक किया है जबकि 'मूकमाटी' में प्रकृति का प्रयोग पूरे सौन्दर्यबोध के साथ आध्यात्मिकता की अभिव्यक्ति में ही किया गया है। रामनरेश त्रिपाठी ने 'स्वप्न' काव्य में कश्मीर यात्रा के दौरान देखे गए सौन्दर्य को अंकित किया है पर 'मूकमाटी' का कवि 'स्वप्न' की कितनी सुन्दर आध्यात्मिक व्याख्या करता है, उसे पृ. २९४-२९५ पर अवलोकित किया जा सकता है।
___ छायावादी कवियों की रोमांटिक मनोवृत्ति ने उन्हें पलायन की ओर प्रवृत्त किया परन्तु 'मूकमाटी' का कवि अथ से इति तक उस आत्मसंघर्ष की बात करता है जो उसे वीतरागता की दिशा में आगे ले जाए। नारी के शृंगारिक चित्रण का तो प्रश्न ही नहीं है बल्कि उसके सारे पर्यायार्थक शब्दों को नया आयाम दिया गया है (पृ.२०२-२०८), जो अन्यत्र कहीं नहीं मिलता । इसी तरह रहस्यात्मकता की अभिव्यक्ति छायावादी कवियों के समान प्रकृति पर सचेतनता के आरोप एवं प्रियतम प्रेमिका के रूपकों के माध्यम से नहीं हुई बल्कि उसके प्रति तटस्थतावादी दृष्टिकोण से हुई है। समकालीन काव्य में 'मूकमाटी' की ये विशेषताएँ दुर्लभ हैं। दार्शनिक अनुचिन्तन
- जैसा हम कह चुके हैं, 'मूकमाटी' एक दार्शनिक महाकाव्य है । उसका उद्देश्य ही उपादान-निमित्त सिद्धान्त की वास्तविकता को उद्घाटित करना रहा है । आचार्यश्री ने अपनी इसी कृति के 'मानस-तरंग' में निमित्त कारणों के प्रति अनास्था रखने वालों से जो प्रश्न पूछे हैं उन प्रश्नों का समाधान निषेधात्मकता द्वारा ही दिया जा सकता है। निमित्त की इस अनिवार्यता को देखकर ईश्वर को सृष्टि का कर्ता मानना भी वस्तु-तत्त्व की स्वतन्त्र योग्यता को नकारना है और ईश्वर-पद की पूज्यता पर प्रश्नचिह्न लगाना है" ('मानस-तरंग', पृ. XXII)। उसी के अन्त में उन्होंने जो कुछ माना है, उसके आधार पर समीक्षक दृष्टि से 'मूकमाटी' महाकाव्य में निम्नलिखित विशेषताएँ देखी जा सकती हैं, जिनमें महाकवि का दर्शन प्रतिबिम्बित होता है :
(१) वीतराग श्रमण संस्कृति की अभिव्यक्ति (२) दार्शनिक सिद्धान्तों की अनुकृति (३) उपादान-निमित्त कारणों की मीमांसक प्रतिकृति