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आधुनिक हिन्दी कविता की शैली में लिखी गीता : 'मूकमाटी'
डॉ. राजमल बोरा आचार्य विद्यासागर रचित 'मूकमाटी' काव्य वैचारिक और प्रतीक प्रधान है। इसे शीर्षक में ही महाकाव्य लिखा गया है। श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन ने 'प्रस्तवन' लिखा है। वे लिखते हैं : “यह कृति अधिक परिमाण में काव्य है या अध्यात्म, कहना कठिन है । लेकिन निश्चय ही यह है आधुनिक जीवन का अभिनव शास्त्र । और, जिस प्रकार शास्त्र का श्रद्धापूर्वक स्वाध्याय करना होता है, गुरु से जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करना होता है, उसी प्रकार इसका अध्ययन और मनन अद्भुत सुख और सन्तोष देगा, ऐसा विश्वास है ।" (प्रस्तवन, पृ. XVII)
दो बातें लक्ष्मीचन्द्रजी बतलाते हैं : (१) आधुनिक जीवन का अभिनव शास्त्र और (२) शास्त्र का श्रद्धापूर्वक स्वाध्याय । इनके साथ काव्य की फलश्रुति भी उन्होंने बतला दी है।
यों 'मूकमाटी'का बाना काव्य का है किन्तु वास्तव में वह शास्त्र ही है । यों भगवद् गीता के कुछ लक्षण इसमें मिलते हैं किन्तु इसकी योजना में गीताजैसी बात नहीं है । लक्ष्मीचन्द्र जैन आधुनिक जीवन का अभिनवशास्त्र'कहते हैं। मैं कहता हूँ- 'आधुनिक गीता' । केशवदास ने भी गीता लिखी थी । उसे 'विज्ञान गीता' कहा गया। किन्तु 'विज्ञान गीता, 'भगवद् गीता' नहीं हो सकी। 'मूकमाटी' को गीता के समान ख्याति मिलेगी या नहीं इसके उत्तर में दो बातें प्रधान हैं : (१) प्रेषणीयता और (२) श्रद्धापूर्वक स्वाध्याय।
'मूकमाटी' के समान काव्य लिखने की हमारे देश में लम्बी परम्परा रही है। इन्हें हम वैचारिक कहें, प्रतीकात्मक कहें, बोधपरक कहें, आध्यात्मिक कहें, विज्ञान परक कहें और सबसे प्रधान नाम 'गीता' कहें। इसी परम्परा में यह काव्य
____ विज्ञान गीता'-केशवदास की दरबारी गीता है। ठीक इसी तरह 'मूकमाटी' आधुनिक हिन्दी कविता की शैली में लिखी हुई गीता है। स्वयं 'गीता' की पद्धति से लिखी हुई गीता नहीं है । इस काव्य को गीता कहने का एक मात्र कारण यह है कि इसमें चिन्तन की सामग्री है, जो बोध स्वरूप है और मनन करने पर जीवन के रहस्य को समझने में उपयोगी
गीता की तरह 'मूकमाटी' में संवाद हैं। किन्तु 'मूकमाटी' के सभी पात्र प्रतीकात्मक हैं। उन्हें लौकिक और ऐतिहासिक नहीं कहा जा सकता। प्रतीकात्मक पात्र प्रायः प्रेषणीय नहीं होते। ऐसे पात्रों का सम्बन्ध जीवन से सीधा नहीं होता। सब कुछ आरोपण है और आरोपण को मान लो तो ठीक है । यह तो मानना ही हुआ । मान लेते हैं, तब तो ठीक है...अन्यथा ये सब दुर्बोध रहेंगे। फिर इन सब पात्रों की संख्या बतलाना कठिन है क्योंकि ये सभी प्रतीकात्मक पात्र योजनाबद्ध नहीं हैं । संवादों में संवाद हैं और यह क्रम एक दूसरे से सम्बद्ध है। 'माटी' के 'कुम्भ' बनने की कथा है किन्तु इसमें कई पात्र इससे ऐसे जुड़ गए जो निर्माण में या सृजन में सहायक हैं। इन सबके संवादों में बोधवृत्ति को प्रधानता दी गई है। एक प्रकार से काव्य-पठन काव्य-पठन न रहकर बौद्धिक कसरत का रूप ले लेता है । आप को रुक-रुक कर पात्रों को अलगाना पड़ेगा और तब कहीं कवि आपको क्या कहना चाहता है- मालूम होगा। जिन पात्रों को आधार बनाकर कवि कह रहा है, वे सब प्रतीक हैं और प्रतीक तो अपने आप में चिह्न स्वरूप होते हैं। उन चिह्नों का जो बोध प्राप्त होता है, वह बोध ही प्रधान होता है। इस रूप में सारा काव्य प्रथम वाचन में तो किसी भी तरह प्रेषणीय नहीं हो सकता। आप आगे पढ़ते जाएँगे और पीछे भूलते जाएँगे। हमारा हृदय इस काव्य को पढ़कर प्रभावित नहीं होता क्योंकि हृदय के उपयुक्त सामग्री काव्य में प्राय: नहीं है । आप मान लेगे, श्रद्धा रखेंगे, तब कुछ पा लें । अन्यथा सोचना ही