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मूकमाटी-मीमांसा :: 211
करने भर को महत्त्व प्राप्त हुआ है :
"सुना है श्मशान में/भूतों के हाथ में मशाल होता है
जिसे देखते ही/निर्भीक की आँखें भी बन्द हो जाती हैं।” (पृ. ३७०) भय से भयभीत व्यक्ति दूसरों को भी भयभीत करता है लेकिन जिसके हृदय में ज्ञान का प्रकाश आ जाता है वह भय की उपासना से दूर होता है :
"पथ-भ्रष्ट एकाकी/अन्धकार से घिरा भयातुर ।
पथिक वह/दीपक को देखते ही अभीत होता है।" (पृ. ३७०) भारतीय समाज में 'नारी' मर्यादा मानी जाती है । लोक में उसके प्रति सम्मानभाव महत्त्वपूर्ण नैतिक मूल्य बना हुआ है । विद्यासागरजी ने इस मूल्य की प्रासंगिक महत्ता को समझा और नए परिप्रेक्ष्य में उस महत्ता को प्रस्तुत करने का प्रयास भी किया :
0 "इनकी आँखें हैं करुणा की कारिका/शत्रुता छू नहीं सकती इन्हें
मिलन-सारी मित्रता/मुफ़्त मिलती रहती इनसे ।/यही कारण है कि इनका सार्थक नाम है 'नारी/यानी-/'न अरि' नारी"/अथवा
ये आरी नहीं हैं/सोनारी"।" (पृ. २०२) 0 "जो/मह यानी मंगलमय माहौल,/महोत्सव जीवन में लाती है
'महिला' कहलाती वह ।” (पृ. २०२) समग्रत: यह कहा जा सकता है कि 'मूकमाटी' में आचार्य विद्यासागरजी ने लोक-दृष्टान्तों या उपमानों के माध्यम से लोक-दर्शन को वाणी दी है जो इस कृति की अपूर्व उपलब्धि है ।
पृष्ठ १९३ तथापि विचार करें तो--- उसका स्वभाव तो छलना है।