Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा। सकता है तथा मद्य पीनेवाली स्त्री भी सती हो सकती है, इस श्रद्धा को दूर हो त्याग देना चाहिये ॥ १२१ ॥
नेत्र कुटिल जो नारि है, कष्ट कलह से प्यार ॥
वचन भड़कि उत्तर करे, जरा वहै निरधार ॥ १२२ ॥ खराब नेत्रवाली, पापिनी, कलह करने वाली और क्रोध में भर कर पीछा जबाब देने वाली जो स्त्री है-उसी को जरा अर्थात् बुढ़ापा समझना चाहिये किन्तु बुढ़ापे की अवस्था को बुढ़ापा नहीं समझना चाहिये ॥ १२२ ॥
जो नारी शुचि चतुर अरु, स्वामी के अनुसार ॥
नित्य मधुर बोलै सरस, लक्ष्मी सोइ निहार ॥ १२३॥ जो स्त्री पवित्र, चतुर, पति की आज्ञा में चलने वाली और नित्य रसीले मीटे वचन बोलने वाली है, वही लक्ष्मी है, दूसरी कोई लक्ष्मी नहीं है ॥ १२३ ॥
घर कारज चित दै करै, पति समुझे जो प्रान ॥
सो नारी जग धन्य है, सुनियो परम सुजान ॥ १२४ ॥ हे परम चतुर पुरुपो ! सुनो, जो स्त्री घर का काम चित्त लगाकर करे और पति को प्राणों के समान प्रिय समझे-वही स्त्री जगत् में धन्य है ॥ १२४ ॥
भले वंश की धनवती, चतुर पुरुष की नार ।।
इतने हुँ पर व्यभिचारिणी, जीवन वृथा विचार ॥ १२५ ॥ भले वंश की, धनवती और चतुर पुरुष की स्त्री होकर भी जो स्त्री परपुर-प से स्नेह करती है-उस का जीवन संसार में वृथा ही है ॥ १२५ ॥
लिखी पढ़ी अरु धर्मवित, पतिसेवा में लीन ॥
अल्प सँतोपिनि यश सहित, नारिहिँ लक्ष्मी चीन ॥१२६॥ विद्या पढ़ी हुई, धर्म के तत्त्व को समझने वाली, पति की सेवा में तत्पर रहने वाली, जैसा अन्न वस्त्र मिल जाय उसी में सन्तोष रखने वाली तथा संसार में जिस का यश प्रसिद्ध हो, उसी स्त्री को लक्ष्मी जानना चाहिये, दूसरी को नहीं ॥ १२६ ॥
१- अर्थात् ज्ञान आदि के विना केवल क्रियाकष्ट कर के साधु नहीं हो सकता है, जिस के लड़ाई में कभी धाव आदि नहीं हुआ वह शूर नहीं हो सकता है (अर्थात् जो लड़ाई में कमी नहीं गया), मद्य पीने वाली स्त्री सती नहीं हो सकती है क्योंकि जो सती स्त्री होगी वह दापों के मूलकारण मद्य को पियेगी ही क्यों? इसलिये केवल क्रियाकष्ट करने वाले को साधु, घावहित पुरुष को शूर वीर तथा मद्य पीने वाली स्त्री को सती समझना केवल भ्रम मात्र है॥ २तात्पर्य यह है कि ऐसी कलहकारिणी स्त्री के द्वारा शोक और चिन्ता पुरुष को उत्पन्न हो जामी है और वह (शोक व चिन्ता) बुडापे के समान शरीर का शोषण कर देती हैं ॥ ३–क्यो के सब उत्तम सामग्री से युक्त होकर भी जो मूर्खता से अपने चित्त को चलायमान करे उस का जीवन वृथा ही है।
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