Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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पञ्चम अध्याय ।
६२१ हाथीशाह ने इस बात को स्वीकार कर लिया तब आचार्य महाराज ने चारों तरफ पड़दे डलबा कर जैसे रात्रि के समय लूणा और उस की स्त्री पलँग पर सोते हुए थे उसी प्रकार सुलवा दिया और ऐसी शक्ति फिराई कि वही सर्प आकर उपस्थित हो गया, तब आचार्य महाराज ने उस सर्प से कहा कि-"इस का सम्पूर्ण विष खींच ले" यह सुनते ही सर्प पलँग पर चढ़ गया और विष का चूसना प्रारम्भ कर दिया, इस प्रकार कुछ देर में सम्पूर्ण विष को खींच कर वह सर्प चला गया और लूणा सचेत हो गया, नगर में राग रंग होने और आनन्द बाजन बजने लगे तथा दीवान हाथीशाह ने उसी समय बहुत कुछ दान पुण्य कर कुटुम्बसहित दयामूल धर्म का ग्रहण किया, आचार्य महाराज ने उस का महाजन वंश और लूणिया गोत्र स्थापित किया।
सूचना-प्रिय वाचकवृन्द ! पहिले लिख चुके हैं कि-दादा साहब युगप्रधान जैनाचार्य श्री जिनदत्त सूरि महाराज ने सवा लाख श्रावकों को प्रतिबोध दिया था अर्थात् उन का महाजन वंश और अनेक गोत्र स्थापित किये थे, उन में से जिन २ का प्रामाणिक वर्णन हम को प्राप्त हुआ उन गोत्रों का वर्णन हम ने कर दिया है, अब इस के आगे खरतरगच्छीय तथा दूसरे गच्छाधिपति जैनाचार्यों के प्रतिबोधित गोत्रों का जो वर्णन हम को प्राप्त हुआ है उस को लिखते हैं:
चौदहवी संख्या-साँखला, सुराणा गोत्र । विक्रमसंवत् १२०५ (एक हजार दो सौ पाँच) में पँवार राजपूत जगदेव को पूर्ण तल्लगच्छीय कलिकाल सर्वज्ञ जैनाचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि जी महाराज ने प्रतिबोध देकर जैनी श्रावक किया था, जगदेवके सूर जी और साँवल जी नामक दो पुत्र थे, इन में से सूर जी की औलादवाले लोग सुराणा कहलाये और साँवल जी की औलादवाले लोग साँखला कहलाये।
१-इन का जन्म विक्रमसंवत् ११४५ के कार्तिक सुदि १५ को हुआ, १९५४ में दीक्षा हुई, ११६६ में सूरि पद हुआ तथा १२२९ में स्वर्गवास हुआ, ये जैनाचार्य बड़े प्रतापी हुए हैं, इन्हों ने अपने जीवन में साढ़े तीन करोड़ श्लोकों की रचना की थी अर्थात् संस्कृत और प्राकृत भाषा में व्याकरण, कोश, काव्य, छन्द, योग और न्याय आदि के अनेक ग्रन्थ बनाये थे, न केवल इतना ही किन्तु इन्हों ने अपनी विद्वत्ता के बल से अठारह देशों के राजा कुमारपाल को जैनी बना कर जैन मत की बड़ी उन्नति की थी तथा पाटन नगर में पुस्तकों का एक बड़ा भारी भण्डार स्थापित किया था, इन के गुणों से प्रसन्न होकर न केवल एतद्देशीय ( इस देश के) जनों ने ही इन की प्रशंसा की है किन्तु विभिन्न देशों के विद्वानों ने भी इन की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है, देखिये! इन की प्रशंसा करते हुए यूरोपियन स्कालर डाक्टर पीटरसन साहब फरमाते हैं कि-"श्रीहेमचन्द्राचार्य जी की विद्वत्ता की स्तुति जबान से नहीं हो सकती है" इत्यादि, इन का विशेष वर्णन देखना हो तो प्रबन्धचिन्तामणि आदि ग्रन्थों में देख लेना चाहिये।
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