Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 337
________________ रतिशेल-रत्नजटी जैन पुराणकोश : ३१९ रतिशेल-भरतक्षेत्र का नन्दिवृक्षों से युक्त एक पर्वत । वनवास के समय महाबल असुर हुए थे। इसका अपरनाम रत्नग्रीव था। मपु० राम-लक्ष्मण और सीता यहाँ आये थे । पपु० ५३.१५८-१६० ६३.१३५-१३६ दे० रत्नग्रीव रतिषण-(१) एक राजा । चन्द्रमती इसकी रानी थी। वानर का जीव रत्नकुण्डल-रत्न जटित कर्णभूषण । इसे पुरुष धारण करते थे। मपु० मनोहर देव दूसरे स्वर्ग के नन्द्यावर्तविमान से चयकर इसी राजा-रानी ४.१७७, १५.१८९ का चित्रांगद नामक पुत्र हुआ था । मपु० ९.१८७, १९१, १०.१५१ रत्नकूट-मानुषोत्तर पर्वत के पूर्व-दक्षिण कोण में स्थित एक कट । यहाँ (२) एक मुनि । हिरण्यवर्मा के तीसरे पूर्वभव का पिता इनसे नागकुमारों का स्वामी वेणुदेव रहता है । हपु० ५.६०७ दीक्षित हुआ था। मपु० ४६.१७३ रत्नगर्भ-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० (३) विजयाध पर्वत के गांधार नगर का एक विद्याधर । गांधारो २५.१८१ इसकी स्त्री थी । इसने सर्प-दंश के बहाने औषधि लाने इसे भेजकर (२) वसुदेव तथा रानी रत्नवती का ज्येष्ठ पुत्र । यह सुगर्भ का स्वयं कुबेरकान्त के साथ काम की कुचेष्टाएँ करनी चाही थी किन्तु बड़ा भाई था । हपु० ४८.५९ सेठ ने 'मैं तो नपुंसक हूँ' कहकर गांधारी के मन में विरक्ति उत्पन्न ___ रत्लग्रीव-विजया की उत्तरश्रेणी में स्थित अलका नगरी के राजा को । गांधारी ने सेठ की पत्नी से यथार्यता ज्ञात करके इसके साथ- अश्वग्रीव और रानी कनकचित्रा का ज्येष्ठ पुत्र । यह रत्नांगद, साथ संयम धारण कर लिया था। विदेहक्षेत्र की पुण्डरीकिणी नगरी रत्नचूड और रत्नरथ आदि का बड़ा भाई था । मपु० ६२.५८-६१ के राजा लोकपाल इससे दीक्षित हुए थे। मपु० ४६.१९-२०, ४८, रत्नचतुष्टय-बलभद्र के चार रल-रत्नमाला, गदा, हल और मूसर । २२८-२३८ मपु० ७१.१२५ (४) जम्बूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश के पृथिवीनगर रलचित्र-विद्याधर नमि का वंशज । यह रत्नरथ का पुत्र और चन्द्ररथ के राजा जयसेन और रानी जयसेना का ज्येष्ठ पुत्र । यह धृतिषण का का पिता था। पपु० ५.१६-१७ बड़ा भाई था। इसका अल्पायु में ही मरण हो गया था। मपु० रत्नचूड-विद्याधर अश्वग्रीव का पुत्र । मपु० ६२.६० दे० रत्लग्रीव ४८.५८-६१ रत्लचूल-एक देव । इसने राम-लक्ष्मण के स्नेह की परीक्षा ली थी। (५) धातकीखण्ड द्वीप के विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश की यह मृगचूल देव को अपने साथ लेकर स्वर्ग से अयोध्या आया तथा पुण्डरीकिणी नगरी का राजा । यह नीतिज्ञ, धर्मज्ञ और धनाढ्य था। अयोध्या में इसने अन्तःपुर की स्त्रियों का मायामय रुदन बताकर मुनि धर्म को ही पाप रहित जानकर इसने राज्य-भार पुत्र अतिरथ लक्ष्मण को राम का मरण दर्शाया था। इससे लक्ष्मण राम का मरण को सौंप करके अर्हन्नन्दन मुनि से दीक्षा ले ली थी तथा अन्त में यह जानकर प्राण रहित हो गये थे। यह देव लक्ष्मण को निर्जीव देख संन्यासमरण कर वैजयन्त विमान में अहमिन्द्र हुआ था। मपु० 'लक्ष्मण का इसी प्रकार मरण होना होगा' ऐसा विचार करता हुआ ५१.२-१५ सौधर्म स्वर्ग लौट गया था । पपु० ११५.२-१६ रतिषेणा-(१) एक कबूतरी। यह रतिवर कबूतर की पत्नी थी। यह रत्नचूला-(१) पर्यंकगुहा के निवासी गन्धर्व मणिचल की देवी । इसके पूर्वभव में जयकुमार की पत्नी सुलोचना थी। मपु० ४६.२९-३० दे० निवेदन पर गन्धर्व मणिचूल ने अष्टापद का रूप धारण कर सिंह के रतिवर और सुलोचना द्वारा किये गये उपसर्ग से गुहा में अंजना की रक्षा की थी। पपु० (२) एक देवी। यह रति देवी के साथ राजा मेघरथ की रानी १७.२४२-२४८, २६० प्रियमित्रा का रूप देखने उसके निकट गयो थी तथा उसका रूप देख (२) वेलन्धर नगर के स्वामी विद्याधर समुद्र की पुत्री। यह कर विरक्त होती हुई स्वर्ग लौट गयी थी। मपु० ६३.२८८-२९५, सत्यश्री, कमला और गुणमाला की छोटी बहिन थी। ये सभी बहिनें दे० रति-३ पिता के द्वारा लक्ष्मण को दी गयी थीं । पपु० ५४.६५, ६८-६९ (६) मृणालकुण्ड नगर के राजा विजयसेन की रानी । यह वचकम्बु 'रत्न-(१) चक्रवर्ती के यहाँ स्वयमेव प्रकट होनेवाली उसके भोगोपभोग को जननी थी । पपु०१०६.१३३-१३४ की सामग्री । यह दो प्रकार की होती है-सजीव और अजीव । दोनों रलजटी-विद्याधर अर्कजटी का पुत्र । इसने सीता को हरकर आकाशमें सात-सात वस्तुएं होती हैं। कुल वस्तुएँ चौदह होती हैं। इनमें मार्ग से जाते हुए रावण को देखा और सीता को छुड़ाने के लिए अजीव रत्न है-चक्र, छत्र, दण्ड, असि, मणि, चर्म और काकिणी रावण से युद्ध करना चाहा था। रावण ने इसे अजेय जानकर इसकी तथा सजीवरल है-सेनापति, गृहपति, गज, अश्व, स्त्री, सिलावट विद्या का हरण करके इसे निर्बल बनाया । यह विद्या के न रहने से और पुरोहित । मपु० ३७.८३-८४, वीवच० ५.४५, ५५-५६ समुद्र के बीच कम्बु नामक द्वीप में आ गिरा था । सुग्रीव के साथ राम (२) रुचक पर्वत की ऐशान दिशा का एक कूट । यहाँ विजयादेवी के निकट आकर इसने अपनी विद्या का और सीताहरण का समाचार रहती है । हपु० ५.७२५ राम को दिया था। सीता की जानकारी पाकर राम ने इसे देवोप'रलकण्ठ-अश्वग्रीव का ज्येष्ठ पुत्र और रत्नायुध का भाई। ये दोनों ___ गीत नगर का स्वामित्व देते हुए इसका सत्कार किया था। पपु० . भाई मरकर चिरकाल तक भव-भ्रमण करने के पश्चात् अतिबल और ४५.५८-६९, ४८.८९-९१, ९६-९७, ८८.४२ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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