Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 468
________________ ४५० : जैन पुराणकोश सुध्वज राजा भूतराष्ट्र और रानी मारवारी का अट्ठानवेयों पुत्र पापु० ८.२०५ सुन (१) भरक्षेत्र में हस्तिनापुर नगर के राजा गंगदेव और रानी नन्दयशा का पाँचवाँ पुत्र । यह नन्दिषेण के भाई के साथ युगल रूप में उत्पन्न हुआ था। इसके गंग, गंगदत्त, गंगरक्षित और नन्द बड़े भाई तथा नन्दिषेण और निर्नामक छोटे भाई थे । मपु० ७१.२६३, हपु० ३३.१४१-१४५ (२) वृन्दावन का रहनेवाला एक गोप । इसकी स्त्री यशोदा थी । बलदेव और वसुदेव ने पालन-पोषण करने के लिए कृष्ण को इसे ही सौंपा था। हपु० ३५.२८-२९ (३) अठारहवें तीर्थंकर अरनाथ का एक असिरन । पापु० ७.२१ (४) एक यक्ष । इसने लक्ष्मण को ससम्मान सौनन्दक तलवार दी थी । मपु० ६८.६४६ (५) आगामी दसवें तीर्थंकर का जीव । मपु० ७६.४७२ (६) तीर्थंकर महावीर के पूर्वभव का जीव । पपु० २०.२३-२४ (७) बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के पूर्वभव के पिता । पपु० २०. २९-३० (८) रावण का एक धनुर्धारी योद्धा । यह राम-रावण युद्ध में युद्ध करने गया था । पपु० ७३. १७१ (९) विजयावती नगरी का एक गृहस्थ । इसकी पत्नी रोहिणी तथा हंस और ऋषिदास पुत्र थे। पपु० १२३.११२-११५ सुनन्दा - (१) गजपुर के राजा सुप्रतिष्ठ की रानी । सुदृष्टि इसका पुत्र या पु० ७०.५२ ० १४.४९, ४५ (२) तीर्थङ्कर वृषभदेव की दूसरी रानो । बाहुबली इसका पुत्र और सुन्दरी पुत्री थी। राजा कच्छ और महाकच्छ की यह बहिन थी । मपु० १५.७०, १६.८, पपु० ३.२६०, हपु० ९.१८, २२, पापु० २.१३३ (३) भरतक्षेत्र के मलय देश में भद्रपुर नगर के राजा दृढरथ की रानी । तीर्थङ्कर शीतलनाथ की ये जननी थी । मपु० ५६.२४, २८२९, पु० २०.४६ (४) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में एकक्षेत्र नगर के एक वणिक् की स्त्री । धनदत्त इसका पुत्र था। पपु० १०६.१०-११ सुनन्विषेण - ( १ ) एक आचार्य । ये लोहाचार्य के पश्चात् हुए अनेक आचार्यों में आचार्य सिंहसेन के शिष्य और ईश्वरसेन के गुरु थे । हपु० ६६.२८ (२) एक आचार्य ये आचार्य ईश्वर के शिष्य और माचार्य अभयसेन के गुरु थे। पु० ६६.२८ सुनपथ – एक नगर । प्रवास से लौटने पर अर्जुन यहाँ रहने लगे थे । कुरुक्षेत्र के निकट विद्यमान सोनीपत से इसे समीकृत किया जा सकता है । पापु० १६.६ 1 सुनम विजयाचं पर्वत की दक्षिणी के स्वामी नाम का पुत्र यह सुलोचना के स्वयंवर में गया था। मपु० ४३.३०२, पापु० ३.५२ Jain Education International सुन-सुन्दरी सुनय - (१) दशानन का पक्षधर एक विद्याधर राजा । यह मय विद्यावर का मंत्री था । पपु० ८.२६९-२७० (२) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१७४ सुनयतत्त्वविदधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम मपु० २५.१४० सुनयना तीर्थकर अजितनाथ की रानी प० ५.६५ दे० अजिनाव सुनाभ - राजा धृतराष्ट्र और गान्धारी का तीसवाँ पुत्र । पापु० ८. १९६ सुनीता - अन्धकवृष्टि और सुभद्रा रानी के चतुर्थ पुत्र हिमवान् की - रानी । मपु० ७०.९५-९६, ९८-९९, हपु० १९.३ सुनेत्रा - पाँचवें नारायण पुरुषसिंह की पटरानी । पपु० २०.२२७ दे० पुरुषसिंह सुनेमि - राजा समुद्रविजय के अनेक पुत्रों में एक पुत्र । हपु० ४८.४३ सुनैगम — एक देव । इन्द्र की आज्ञा से इसने देवकी के युगलपुत्रों को सुभद्विलनगर के सेठ सुदृष्टि की स्त्री अलका के पास और उसी समय अलका के उत्पन्न हुए मृत युगलपुत्रों को देवकी के पास प्रसूतिगृह में पहुँचाये थे । हपु० ३५.४-५ सुन्य अलंकारपुर के का कनिष्ठ पुत्र । निवासी खरदूषण तथा रावण की बहिन दुखा शम्बूक का यह अनुज था। चारुरत्न इसका पुत्र था । पपु० ४३.४०-४४, ११८.२३ सुम्बन - एक राजा । इसने राम के भाई भरत के पास दीक्षा ली थी तथा परमात्म पद प्राप्त किया था। पपु० ८८.१.२, ६ सुन्दर - ( १ ) एक राजा । इसने तीर्थंकर वासुरज्य को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । मपु० ५८.४०-४१ (२) कुण्डलगिरि के उत्तरदिशा संबंधी स्कटिकूट का निवासी एक देव । हपु० ५.६९४ (1) भरतक्षेत्र का एक मिध्यादृष्टि ब्राह्मण दास के सदुपदेश से यह सम्यक्त्वी हो गया था। अन्त में समाधिपूर्वक मरण करके व्रताचरण से उत्पन्न पुण्य के प्रभाव से यह सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ और स्वर्ग से चयकर राजा श्रेणिक का अभयकुमार नामक पुत्र हुआ । वीवच० १९.१७०-२०३ सुम्बरनन्वा – जम्बूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में महावत्स देश की सुसीमा नगरी के राजा सुदृष्टि की रानी । ये तीर्थंकर सुविधि की जननी थीं । मपु० १०.१२१-१२२ सुन्दरमालिनी - हनूरुह द्वीप के विचित्रभानु की स्त्री । अंजना के मामा प्रतिसूर्य की ये माता थीं । पपु० १७.३४४-३४६ सुन्दरी - ( १ ) तीर्थंकर वृषभदेव और उनकी दूसरी रानी सुनन्दा की पुत्री मे बाकी की बहिन यो वृषभदेव ने इसे अन्य भाईबहिनों के साथ चित्र, अक्षर, संगीत, गणित आदि कलाओं में पारंगत किया था। इसने अपने पिता तीर्थंकर ऋषभदेव से दीक्षा ले ली थी । यह आर्यिकाओं में अग्रणी रही । मपु० १६.७-८, २४.१७७, हपु० ९.१८, २२-२४ १२.४२, पापु० २.१५५ (२) चक्रपुर नगर के राजा अपराजित की रानी, चक्रायुध की जननी । मपु० ५९.२३९, हपु० २७.८९-९० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576