Book Title: Jain Diwali Sampurna Puja
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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अंतरायकर्म नाशार्थ अर्ध्य लाभ की अंतराय के वस जीवसु न लहै। जो करै कष्ट उत्पात सगरे कर्मवस विरथा रहै।। नहीं जोर वाको चले इक छिन दीन सौ जग में फिरै।
अरिहंत सिद्ध अधर धरिकै लाभ यौ कर्म को हरै।। ऊँ ह्रीं लाभांतरायकर्म रहिताभ्याम अहर्तसिद्ध परमेष्ठिभ्याम अर्घ्यम निर्वपामीति स्वाहा।
पुष्पांजलिं क्षिपेत
श्री महावीर जिनपूजा
(कविवर वृन्दावन कृत) श्रीमतवीर हरै भवपीर सुखसीर अनाकुलताई। के हरि अंक अरीकर दंक नये हरि पंकति मौलिसुहाई।। मैं तुमको इत थापत हों प्रभु भक्ति समेत हिये हरखाई। हे करुणाधन धारक देव, इहां अब तिष्ठहु शीघ्रहिं आई।।
ऊँ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्राय पुष्पांजलिः।
क्षीरोदधि सम शुचि नीर, कंचन भृग भरों।
प्रभुवेग हरो भव्पीर, या धार करों। श्रीवीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो।
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मतिदायक हो।। ऊँ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मलयागिर चन्दन सार, केसर संग धसों। प्रभु भव आताप निवार, पूजत हिय हुलसों।। श्रीवीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो।
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मतिदायक हो। ऊँ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय चन्दनम निर्वपामीति स्वाहा।
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