Book Title: Jain Diwali Sampurna Puja
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
तन्दुलसित शशिसम शुद्ध लीनों थार भरी। तसु पुंज धरों अविरुद्ध, पावों शिव नगरी।। श्रीवीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो।
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मतिदायक हो।। ऊँ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा।
सुरतरु के सुमन समेत, सुमन सुमन प्यारे।
सो मंथन भंजन हेत, पूजों पद थारे।। श्रीवीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो।
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मतिदायक हो।। ऊँ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय पुष्पम निर्वपामीति स्वाहा।
रस रज्जत सज्जत सद्य, मज्जत थार भरी। पद जज्जत रज्जत अद्य, भज्जत भूख अरी।। श्रीवीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो।
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मतिदायक हो।। ऊँ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय नैवेद्यम निर्वपामीति स्वाहा।
तम खन्डित मन्डित नेह, दीपक जोवत हों। तुम पदतर हे सुख गेह, भ्रमतम खोवत हों।। श्रीवीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो।
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मतिदायक हो।। ऊँ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय दीपम निर्वपामीति स्वाहा।
हरि चन्दन अगर कपूर चूर सुगन्ध करा। तुम पदतर खेवत भूरि, आठों कर्म जरा।। श्रीवीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो।
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मतिदायक हो।। ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय धूपम निर्वपामीति स्वाहा।
20

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34