Book Title: Jain Diwali Sampurna Puja
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 28
________________ केला अनार सह्कार सुपक्क जामू, ये सिद्धमिष्ठ फल मोक्षफलाप्ति को मैं। संसार के अखिल त्रास निवारने को योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता। ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय फलम निर्वपामीति स्वाहा। पानीय आदि वसु द्रव्य सुगन्धयुक्त, लाया प्रशांत मन से निज रूप पाने। संसार के अखिल त्रास निवारने को योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता। ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय अर्ध्यम निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला वीर जिनेश्वर के प्रथम गणधर-गौतम-पाय। नमन करूँ कर जोडकर स्वर्ग मोक्ष फल दाय।। हरिगीत्तिका जय देव श्रीगौतम गणेश्वर। प्रार्थना तुमसे करूँ। सब हटा दो कष्ट मेरे अर्ध्य ले आरती करूँ। हे गणेश। कृपा करो, अब आत्म ज्योति पसार दो। हम हैं तुम्हारे सदय हो दुर्वासनायें मार दो। वीर प्रभुनिर्वाण-क्षण में था सम्हाला आपने। अब चोड तुमको जाउँ कहँ घेरा चहँ दिशि पाप ने। है दिवस वह ही नाथ। स्वामीवीर के निर्वाण का। जग के हितैषी बिज्ञ गौतम ईष केवल ज्ञान का। नाथ। अब कर के कृपा हम्को सहारा दीजिये। दीपमाला-आरती पूजा गृहम मम कीजिये। दीपमाला-आरती पूजा गृहण मम कीजिये। ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय अर्ध्यम निर्वपामीति स्वाहा। ज्योति पुंज गणपति प्रभो। दर करो अज्ञान समता रस से सिक्त हो नया उगे उर भानु।। 28

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