Book Title: Jain Darshan aur Vigyan Author(s): Mahendramuni, Jethalal S Zaveri Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 9
________________ भी तनाव बढ़े हैं ६९ - श्रम को हेय न मानें ६९ - मन की शांति ६९ - संयम ७५ - सत्यनिष्ठा ७७ अभ्यास-८१ ३. जैन दर्शन और परामनोविज्ञान... ८२-१३८ (१) आत्मवाद और पुनर्जन्मवाद ८२ - १०८ जैन दर्शन का दृष्टिकोण ८२ - अध्यात्मवाद बनाम भौतिकवाद ८२ - जाति - स्मृति ज्ञान ८४-विभिन्न धर्म-दर्शनों में पुनर्जन्मवाद ८५ - परामनोविज्ञान ८७ - पुनर्जन्म पर परामनोविज्ञान में अनुसंधान ९१ - ब्राजील में अढ़ाई वर्ष की बालिका को पूर्व जन्म की स्मृति ९२–गवेषणा पद्धति ९७ - विस्मृति ९८ - आनुवंशिक स्मृति ९९ - अतीन्द्रिय प्रत्यक्षण शक्ति ९९ - भूतावेश १०० - पूर्वजन्म की अद्भुत बातें १०२ - मृत शरीर का अधिग्रहण १०५ - उपसंहार १०७ (२) अतीन्द्रिय ज्ञान : दूरबोध एवं परचित्त-बोध १०९-१२४ जैन दर्शन का दृष्टिकोण १०९ - समाधान : अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष के संदर्भ में ११० - चैतन्य- केन्द्र क्या है ? ११२ - समूचा शरीर ज्ञान का साधन ११२ - सभिन्न स्रोतोलब्धि ९१३ - मन की क्षमता ११३ - पूर्वाभास अतीन्द्रिय ज्ञान है ? ११३ - अतीन्द्रिय चेतना का प्रकटीकरण ११५ - विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र ११५ - प्रेक्षाध्यान की प्रक्रिया ९९६ - प्रेक्षाध्यान निष्पत्ति ११६–केन्द्र और संवादी केन्द्र ११७ - परामनोविज्ञान में अतीन्द्रिय प्रत्यक्षण ११७-विचार-संप्रेषण १२१ - अतीन्द्रिय चेतना : विकास की प्रक्रिया १२२- भावतंत्र का परिष्कार १२३ (३) अतीन्द्रिय शक्ति - योगज उपलब्धियां एवं मनः प्रभाव १२४-१३८ जैन दर्शन का दृष्टिकोण - ऋद्धि और लब्धि १२४ - सही दिशा १२५ - लब्धियों की विचित्र शक्ति १२६-ऋद्धियां प्राप्ति और परिणाम १२७ - तेजोलेश्या (कुण्डलिनी) तैजस शरीर : अनुग्रह-विग्रह का साधन १२९ - तेजोलेश्या का साधन १३० - तेजोलेश्या के विकास स्रोत १३१–परामनोविज्ञान में मन:प्रभाव (साइकोकाइनेसिस) १३१ अभ्यास- १३८ ४. विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली ... १३९-२०९ जीवन जैन जीवन-शैली १३९- शैली क्यों ? १३९ - आहार - शुद्धि और व्यसन - - मुक्त १४० - दूषित आहार का परिणाम : रोग १४० Jain Education International .......... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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