Book Title: Jain Darshan aur Vigyan Author(s): Mahendramuni, Jethalal S Zaveri Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 4
________________ प्राक्कथन हम बीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक में जी रहे हैं और इक्कीसवीं की दहलीज पर खड़े हैं। युगीन चुनौतियों को झेलने के लिए एक विद्यार्थी के लिए किन-किन विद्याओं का अध्ययन अत्यावश्यक है, यह शिक्षा-जगत् का एक अहम प्रश्न है। “जीवन-विज्ञान और जैन विद्या" इस चुनौति का एक उत्तर है। इस सर्वथा नवीन विषय की परिकल्पना में प्राचीन प्रज्ञा-प्रसूत ज्ञान-राशि को आधुनिक प्रयोग-प्रसूत विज्ञान-राशि के साथ जोड़कर विद्यार्थी की अन्त:चेतना को जागृत करने का प्रयास किया जा रहा है। इसी परिप्रेक्ष्य में 'जैन दर्शन और विज्ञान' को इस पाठ्यक्रम में समाविष्ट किया गया है। इस विषय की प्रतिपत्ति एक ओर विद्यार्थी को प्राचीन के प्रति श्रद्धाशील बनाएगी, तो साथ ही आधुनिक विज्ञान का अवबोध उसे प्रायोगिक आधार प्रदान करेगा। इस अर्थ में जीवन-विज्ञान और जैन विद्या' की अभिनव विधा वर्तमान शिक्षा-पद्धति के लिए दिशासूचक अवदान सिद्ध होगी। जैन दर्शन की विशाल ज्ञान-राशि में अध्यात्म, धर्म, तत्व-दर्शन, जीवनशैली, आचार-शास्त्र, अतीन्द्रियज्ञान, पुनर्जन्मवाद, भावनात्मक स्वास्थ्य, योगविद्या, प्रेक्षा यान, विश्व-विज्ञान, परमाणु-विज्ञान आदि विभिन्न महत्त्वपूर्ण विषयों के सम्बन्ध में जो सूक्ष्म विवेचन उपलब्ध है उसका आधुनिक विज्ञान की भौतिकी (Physics), जैविकी (Biology), मनोविज्ञान (Psychology), विश्व-विज्ञान (Cosmology), सृष्टिशास्त्र (Cosmogony), परमाणु-विज्ञान (Atomic Science), स्वस्थ्य-विज्ञान (Health Science) आदि विभिन्न शाखाओं के अन्तर्गत प्रस्तुत अवधारणाओं के सन्दर्भ में सूक्ष्मेक्षिकया किया गया अध्ययन न केवल विद्यार्थी के बौद्धिक विकास एवं ज्ञानवर्धन की दृष्टि से उपयोगी सिद्ध होगा, अपितु उसके अपने जीवन-विकास के लिए भी बहुत लाभप्रद होगा-इस उद्देश्य से प्रस्तुत पुस्तक को आकार दिया गया है। आज के युग में प्राच्य विद्याओं के वैज्ञानिक स्वरूप को हृदयंगम करना प्रत्येक विद्यार्थी के लिए अत्यन्त अपेक्षित है। इससे भारतीय दर्शन एवं संस्कृत की सार्वदेशिकता एवं सार्वकालिकता उजागर होती है। कोरे बौद्धिक ज्ञान या वैज्ञानिक पद्धति से प्राप्त ज्ञान की अपेक्षा अन्त:दर्शन (intuition) द्वारा होने वाला बोध अधिक सूक्ष्म और सत्य-स्पर्शी होता है, इसे वह जान सकेगा। Tao of Physics के लेखक डॉ. फ्रिटजोफ काप्रा (Fritzof Capra) के शब्दों में-“जब बौद्धिक/तार्किक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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