Book Title: Gora Badal Padmini Chaupai
Author(s): Hemratna Kavi, Udaysinh Bhatnagar
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan

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Page 8
________________ प्रस्तावना प्राभार निवेदन सन् 1940-41 में मैंने उदयपुर में और उसके आसपास के गांवों तथा ठिकानों में शचीन हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज कर लगभग 2000 ग्रन्थों के विवरण लिये थे। इस खोज में मुझे पद्मिनी की कथा से सम्बन्धित अनेक रचनाप्रतियां देखने को मिली। इसी समय आचार्य मुनि जिनविजय जी से मेरा सम्पर्क हुआ। दो वर्ष तक बम्बई में भारतीय विद्या भवन में उनके साथ रह कर विद्याभ्यास कर ज्ञान से लाभान्वित हुना। 'पदमिनी चउपई' भी उस कार्यक्रम का एक प्रधान अंग रहा / इसका एक आलोचनात्मक संस्करण तैयार करने की प्रेरणा मुनिजी से प्राप्त हुई और इस कार्य को मैंने बम्बई में रहकर पीएच० डी० के लिये थीसिस के रूप में अंग्रेजी में तैयार किया। हिन्दी के प्रति विशेष प्राग्रह होने के कारण मन न माना। मैंने बम्बई विश्वविद्यालय से हिन्दी में थीसिस प्रस्तुत करने की प्राज्ञा मांगी, पर प्राज्ञा न मिली; हाँ, इस बात की प्राज्ञा तो मिली कि मैं उसे हिन्दी में लिखित किसी अन्य-जो लेना चाहे उसविश्वविद्यालय को प्रस्तुत करूँ तो बम्बई विश्वविद्यालय को कोई आपत्ति नहीं होगी। कार्य शिथिल पड़ गया। इस बीच हिन्दी में पुनः थीसिस लिखने के पूर्व किसी विश्वविद्यालय की खोज का प्रश्न सामने आ गया। कार्य चलता रहा / नवीन सामग्री नवीन अनुभवों के साथ जुड़ती रही / राजस्थान विश्वविद्यालय स्थापित हुप्रा। 1962 में मैंने 'हेमरतन कृत पदमिणि चउपई-एक परिपूर्ण मालोचनात्मक संस्करण तथा उसकी भाषा-राजस्थानी वि० सं० १६४५-का वैज्ञानिक अध्ययन'-थीसिस प्रस्तुत किया। वह स्वीकृत हो गया पौर मुझे पी-एच० डी० की डिग्री भी प्राप्त हो गई। यह सब हुआ मुनिजी की प्रेरणा, प्रोत्साहन और प्रबोधन से। आभार मुझे प्रकट करना है-पर किन भावनाओं में, किन शब्दों में ? एक शिष्य जिसके पास वाणी नहीं, शब्द नहीं-वह अपनी वाणी की कंगाली को भी प्रकट करने में असमर्थ है, आभार तो उसके लिये बहुत भारी है-बलिहारी गुरु प्रापणे, जिन गुरु दियो बताय।"

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