Book Title: Gadya Chintamani
Author(s): Vadibhsinh, T K Kuppuswami Sastri, S Subhramhanya Sastri
Publisher: Madras

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Page 21
________________ गद्यचिन्तामणौ . गीतसंगतैः संभृतमहोदधिमथनघोषमत्सरैर्जिनमहोत्सवतुमुलरवैः परिभूत इव नावकर्ण्यते कदापि कल्याणेतरपिशुनशब्दः । यत्र च स्त्रीणामधरपल्लवेष्वधरता कुचतटेषु कठिनता कुन्तलेषु कुटिलता मध्येषु दरिद्रता कटाक्षेषु कातरता रतेषु विनयातिक्रमो मानग्रहेषु निग्रहः प्रणयकलहेषु प्रार्थनाप्रणामः पञ्चबाणलीलासु वञ्चनावतारः परमभूत् । - तस्यां चैवंविधायां विधेयीकृतप्रकृतिः , प्रतापविनमदवनीपतिमकुटमणिवलभीविटङ्कसंचारितचरणनखकान्तिचन्द्रातपः, करतलकलितकरालकरवालमयूखतिमिराभिसरदाहवाविजयलक्ष्मीलक्षितसौभाग्यः , समरसागरमथनसंभृतेन सुधारसेनेव प्रतापदहनदन्दह्यमानप्रतिभटविपिनजनितभसितराशिनेव निजभुजविटपिविनिर्गतकुसुमस्तबकेनेव परिपन्थिपार्थिवपङ्कजाकरसंकोचकौतुकसंचितेन चन्द्रमरीचिनिचयेनेव खड्गकालिन्दीसजातेन फेनपटलेनेव पाण्डुरेण यशसा प्रकाशितदिगन्तः, मन्दीकृतमन्दरमहीभृति निजांसपीठे बहुनरपतिबाहुशिखरसमारोहणावरोहणपरिखेदिनी मेदिनीं चिराय विश्रामयन् , अश्रान्तपरिचीयमानेन वनीपकचातकपरिषद्विषादविघटनघनारम्भेण कर्णकीर्तिकैरविणीनिमलिनबालातपेन कविकुलकलहंसकलस्वनश्रवणशरदवतारेण वितरणगुणेन मन्द. यन्मन्दारगरिमाणम् , रणजलवितरणपोतपात्रेण कृपाणविषधरविहारचन्दनविटपिवनेन क्षत्रधर्मदिनकृदुदयपर्वतेन पराक्रमेण क्रीतार्णवाम्बरः, प्रयाणसमयचलदलबुचमूभारविनमितेन महीनिवेशेन फणाचक्रं फणाभृतां चक्रवर्तिनो जर्जरयन्दिशिदिशि निहितजयस्तम्भः , कुमार इव शक्तिकलितभूभृद्विग्रहः, शतमख इव सुमनसामेकान्तसेव्यः, सुमेरुरिव राजहंसलालितपादः, दुर्योधन इव कर्णानुकूलचरितः, चन्द्र इव कुत्रलयानन्दिकरप्रचारः , चण्डदीधितिरिव कमलाकरसुखायमानपादः, पा

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