Book Title: Gadya Chintamani
Author(s): Vadibhsinh, T K Kuppuswami Sastri, S Subhramhanya Sastri
Publisher: Madras

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Page 19
________________ गद्यचिन्तामणौ नाय प्रसार्यमाणैः शारदपयोधरावधीरणधुरीणैः पराजितपारिजातदुकूलैरनुकूलस्पर्शसुखसंपादनक्षमैः क्षौमैरुन्मिषक्षीरोदशङ्केन कृचित्पुनर्मथनचकितजलधिढौकितैरिव गाढोद्गच्छदतुच्छमहःस्तबकितैः कौस्तुभप्रतिमल्लैरनुपलक्षितत्रासकलङ्कादिदोषैरहिमकरकुटुम्बडिम्भरिव क्षितितलचङ्कमणकुतूहलादम्बरतः कृतावतारैर्माणिक्यैर्मध्यंदिनेऽप्यनुज्झितदिवसमुख - लावण्येन कुचित्प्रतिफलिततरणिकिरणधवलमरीचिनिर्गमप्रतिहतजननयनपरिस्पन्दैः परस्परसंघट्टजनितक्रेङ्काराराववाचालैः कांस्यमण्डलैः समसमयसमुदितानेकदिनकरकरनिकरविराजितस्य प्रलयसमयस्यानुकुर्वता विपणिपथेन कुटलितकुबेरनगरगौरवा, सान्द्रीकृतवर्णसुधाच्छु णधवलिततोरणवितर्दिकैरनुद्वारदेशनिहितकदलीपूगकथितमहोत्सवप्रबन्धैरुत्तप्तहाटकघटितकवाटयुगलभूषितैोषिदङ्गलावण्यचन्द्रिकाचर्वणवितृष्णचकोरावहेलितचन्द्रमरीचिसमुद्गमैः संगीतशालाप्रहतमृदङ्गमन्द्रघोषजनितजलधरनिनदशङ्काताण्डवितकेलिशिखावलैजलदनलकीलसंदेहिलीलांकुरङ्गशाबकपरिह्रियमाणरत्नकुट्टिममहःपल्लवैः पवनचलितशिखरकेतुपटताडिततपनरथकूबरैरुपरितलखचितवलभिदुपलनीलिमशैवलितसुरसरिदम्बुपूनियूहनिहितानेकरत्नभुवा मयूखकन्दलेन महेन्द्रशरासनशोभामम्भोदसमयमन्तरेणापि पयोधरेभ्यः प्रतिपादयद्भिर्मणिमयभित्तितया प्रसरद्भिरुभयतः किरणलतावितानैर्विबुधराजमन्दिरविजिगीषया विहायसमुत्पतितुमाबद्धपक्षैरिव लक्ष्यमाणैः शृङ्गीनखातकेतुदण्डच्छलेन पुरयुवतिवदनसौकुमार्यचोरं चन्द्रमसं ग्रहीतुमुत्तम्भितबाहुस्तम्भैरिव शुम्भद्भिर्दुर्धरधरणीधारणखेदितमीदनीपतिबाहुमाराधयितुमागतैः कुलगिरिभिरिव गुरुभिः प्रासादैः प्रसाधिता, आकर्णकुण्डलितकुसुमशरकोदण्डनिपतितविशिखभिन्नड - दयगलितरुधिरपटलपाटलकुङ्कुमपङ्किलपयोधरभराभिः कान्तिसलिलशीकरपरिपाटीमनोहरं हारमुद्वहन्तीभिर्विलासहसितविसर्पिणा दशनकिरणवि

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