Book Title: Collection of Kalka Story Part 02 Author(s): Ambalal P Shah Publisher: Sarabhai Manilal Nawab View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कालिकाचार्यकथासंदर्भः । [3] श्रीभद्रबाहुस्वामिविरचित - बृहत्कल्पसूत्र तन्निर्युक्तिगतः श्रीसंघदासगणिविरचित-तद्भाष्यान्तर्गतश्च कालिकाचार्यकथासंदर्भः । [ ] सागरियमप्पाहण, सुवन्न सुयसिस्स खंतलक्खेण । कहणा सिस्सागमणं, धूलीपुंजोवमाणं च ॥ २३९ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उज्जेणीए नयरीए अजकालगा नाम आयरिया सुत्तत्थोववेया बहुपरिवारा विहरंति । तेसि अज्जकालगाणं सीसस्स सीसो तत्थोवबेओ सागरो नामं सुवन्नभूमीए विहरइ । ताहे अजकालया चितेंति - एए मम सीसा अणुयोगं न सुति तओ किमेएसि मज्झे चिट्ठामि ?, तत्थ जामि जत्थ अणुयोगं पवत्तेमि, अवि य एए वि सिस्सा पच्छा लज्जिया सोच्छिर्हिति । एवं चितिऊण सेज्जायरमापुच्छंतिक अन्नत्थ जामि ? तभ मे सिस्सा सुणेहिंति, तुमं पुण मा तेर्सि कहेजा, जह पुण गाढतरं निब्बंधं करिज्जा तो खरंटेउं साहेज्जा, जहा - सुवन्नभूमीए सागराणं सगासं गया । एवं अपाहित्ता रत्ति चैव पत्ताणं गया सुवण्णभूमिं । तत्थ गंतुं खंतलक्खेण पविट्ठा सागराणं गच्छं । तओ सागरायरिया ' खंत ' ति काउं तं नाढाइया अन्भुट्टाणाइणि । तओ अत्थपोरिसीवेलाए सागरायरिएणं भणिया-संता ! तुमं एवं गमइ ! | आयरिया भणति - आमं । ' तो खाइं सुणेह ' प्ति पकहिया । गव्वायंता य कहिंति । इयरे वि सीसा पभाष संते संभते आयरियं अपासंता सव्वत्थ मग्गिउं सिज्जाय रं पुच्छति । न कहेइ, भणइ य-तुब्भं अप्पणो आयरिओ न कहेइ, मम कहूं कहेइ ! ततो आउरीभूएहिं गाढनिब्बंधे कए कहियं, जहा- तुन्भच्चएण निव्वेषण सुवन्नभूमीए सागराणं सगा गया । एवं कहता ते खरंटिया । तभा ते तह चेव उच्चलिया सुवन्नभूमि गंतु । पंथे लोगो पुच्छह-एस कयरो भायरिभो जाइ ? । ते कहिंति - अज्जकालगा । तओ सुवन्नभूमीए सागराणं लेोगेण कहियं, जहा - अज्जका लगा नाम आयरिया बहुस्सुया बहुपरिवारा इहाऽऽगंतुकामा पंथे वति । ताहे सागरा सिस्साणं पुरओ भणंति-मम अज्जया इंति, सिगासे पयत्ये पुच्छीहामिति । अचिरेण ते सीसा आगया । तत्थ अग्गिल्लेहिं पुच्छिज्जेति किं इत्थ आयरिया आगया चिट्ठति ? । नत्थि, नवरं अन्ने खंता आगया । केरिसा ! | वंदिय नायं ' एए आयरिया' । ताहे सो सागरो लज्जिओ - बहुं मए इत्थ पलवियं, खमासमणा य वंदाविया । ताहे अवरहषेलाए मिच्छा दुकडे करेइ 'आसाइय' त्ति । भणियं च णेण - केरिसं स्वमासमणो ! अहं वागरेमि ! | आयरिया भणति - सुंदरं, मा पुण गव्वं करिज्जासि । ताहे धुलीपुंजदित करेंति-धूली हत्थेण घेत्तुं तिसु ठाणेसु ओयारेंति-जहा एस धूली ठविज्जमाणी उक्खिष्पमाणी य सव्वस्थ परिसss, एवं अत्थो वि तित्थगरेहिंतो गणहराणं गणहरेहिंतो जाव अम्हं आयरियउवज्झायाणं परंपरपूर्ण आगयं, को जाणइ करस केइ पज्जाया गलिया ? ता मा गब्बं काहिसि । ताहे मिच्छा दुक्कढं करिता भारता -अज्जका लिया सीसपसीसाण अणुयोगं कहेउं ॥ For Private And Personal Use Only - बृहत्कल्पसूत्रम्-विभागः १ पत्रम् ७३-७४ ॥Page Navigation
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