Book Title: Collection of Kalka Story Part 02
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिकाचार्यकथा । (४०) पीऊसपूरसरिसा, ससहरकिरणावली तमिस्सामु । पञ्चाछेइ असेसं, अहियं भुवणोयरं जस्य ॥४०॥ (४१) साळिवणरक्खवणोजयपामरिगिज्जतमहुरगीएहि । पबिझंता पहिया, पंथाओ जत्य भस्संति ॥४१॥ (४२) इय बहुजियतोसयरे पत्ते सरयम्मि नवरि विहाणो । पत्ति रहंगो भवचित्तरूवसंसाइणत्यं व ॥१२॥ एवंविहं च सरयकालसिरिमवलोइऊण णियसमीहियसिद्धिकामेण भणिया ते काल्यसूरिणा जहा-भो! किमेवं णिरुज्जमा चिट्ठह ! तेहिं भणियं-आइसह किं पुण करेमो ! । सूरिणा भणियं-गेण्हह उज्जेणि, जओ तीएं संबंद्धो पभूओ मालवदेसो, तत्थ पज्जत्तीए तुम्हाणं णिन्वाहो भविस्सँइ । तेहिं भणियं-एवं करेमो, परं णस्थि संबलय, जम्हा एयम्मि देसे अम्हाण भोयणमेत्तं चेव जायं । तओ सूरिणा जोगचुण्णचहुंटियामेत्तपक्खेवेण सुवणीकाऊग सव्वं कुंभारावाह भणिया-एयं संबलयं गेण्हह । तओ ते "तं विभज्जिऊग सव्वसामग्गीए पँयहा उज्जेणि पइ । अवंतरे य जे के वि लाडविसयरायाणो ते साहित्ता पत्ता उज्जेणिविसयसंधिं । तओ गद्दभिल्लो तं परबलमागच्छंत सोऊण महाबलसामग्गीए निग्गओ, पत्तो य विसयसंधि । तओ दुहं पि दप्पुद्धरसेण्णाणं लग्गमाओहणं, अवि य(४३) निवदंततिक्खसरन्भसरसेल्ल-चावल्ल-सव्वलरउद्दो, खिप्पंतचक्क-पट्टिस-मोग्गर-णारायबीभच्छो । असि-परसु-कुंत-कुंगी-संघदृटुंतसिहिफुलिंगोहो, भंडपुक्काररवट्टो स्यछाइयसूकरकरपसरो ॥४३॥ (४४) एवंविहसमरभरे, वहते गहभिल्लणरवइणो। सेण्णं खणेण णटुं, वायाहयमेवंदं व ॥४४॥ (४५) तं भग्गं दट्टण, वलिऊणं पुरवरी' णरणाहो । __पविसित्तु तओ चिट्टइ, रोहगसज्जो णियबलेण ॥४५॥ इयरे वि निस्संचरिवलयबंधेण णयरि रोहेऊण ठिया। कुणंति य पइदिणं डोयं । अन्नम्मि दिवसे जाव ढोएण उवष्टिया ताव पेछंति सुग्णय कोई । तओ तेहिं पुच्छिया सूरिणो-भगवं ! किमज्ज सुण्णय कोट्टं दीसइ ! तओ परिहिं सुमरेऊय भणियं जहा-अज अहमी", तत्थ य गभिल्लो उववासं काउण गद्दभिं महाविज्ज साहइ ता निरूवह कत्थेइ अट्टालोवट्टियं गद्दभि । निरुवंतेहिं य दिट्ठा, दसिया य सूरीणं । सूरोहिं भणियं नहा-एसा गडभिल्लजावसमत्तीए महइमहालयं सदं काहिसँइ, तं च परबलसतिय"जं दुपयं चउप्पयं वा सुणेस्सइ ते सव्वं मुहेण रुहिरं उग्गिरंत निस्संदेहं भूमीए निवडेस्सइ, ता सव्वं सजीवं दुपयं चउप्पयं घेत्तण दुगाउँर्यमित्तं भूमागमोसरह भट्ठोत्तरसयं च सेवेहीणं ७५ परिवज्जता 01 •ए पडिबुदो CDEHT ७७ दो बहुओ HI •स्सइ । जम्हा H९ of पाळणं ।। .. कुंभकारावाहं CD I, कुंभकाराचहं । १ बलं गिण्ड CDEHI .२ तेणं विभ• CD I, ते विभंजिक्रम H३ पडिया CDEHT ON भतरा व EHI ८५ ते वि मा. H14 • ततुंगी •HI, • तकुंगी | ७ भाडवाररवदो CDEOI 4 • हविदं ।। ९ चार व•CDEHI ९. • भी, गह H। .त्य वि महालए उषियं CDEO I, 'त्य व भार ठिय H । ९२ • कविते • CDE | ९३ • हिंह, ते CDO । ९४ • पहरिष • EH | ९५ • पसरतिय H ॥ • यमेतं H९७ • मम CDE 1 For Private And Personal Use Only

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