Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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मगध के कवि संस्कृत का सुन्दर काव्यपाठ करते थे किन्तु प्राकृत काव्यपाठ में कुण्ठित हो जाते थे। लाट देश के कवि प्राकृत का तो ललित उच्चारण सहित सुन्दर पाठ करते थे, किन्तु उनका संस्कृत काव्यपाठ उत्तम नहीं था। सुराष्ट्र, त्रवण आदि देशों के कवि संस्कृत तथा अपभ्रंश दोनों का सुन्दर, स्पष्ट काव्यपाठ करते थे। कर्णाट देशवासी प्रत्येक रस, रीति अथवा गुण में अत्यन्त स्पष्ट किन्तु टनटनाहट के साथ काव्यपाठ करते थे। द्रविड देशवासी काव्यमर्मज्ञ तो थे, किन्तु गद्य, पद्य तथा मिश्र सभी का गाकर पाठ करते थे। सरस्वती के कृपापात्र होने पर भी काश्मीर के कवि अतिशय कर्णकटु काव्यपाठ करते थे। उत्तरापथ के कवि व्याकरण शास्त्र के ज्ञाता होने पर भी सानुनासिक पाठ करते थे। आचार्य राजशेखर ने गौड देश वासियों के काव्यपाठ को मध्यमकोटि का माना था। क्योंकि उनके पाठ का वैशिष्ट्य था न अति स्पष्ट, न अस्पष्ट, न रूक्ष न अतिकोमल, न अति उच्च स्वर न गम्भीर स्वर। किन्तु मध्यमकोटि का काव्यपाठ करने वाले यह गौडदेशवासी भी प्राकृत भाषा का कर्णकटु काव्य पाठ प्रस्तुत करते थे। अत: सरस्वती दुःखी थीं 2
आचार्य राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' में सर्वाधिक प्रशंसा पाञ्चाल देश के कवियों के काव्यपाठ
की प्रस्तुत की है। उनका पाठ अत्यन्त मधुर, नियमानुसार समुचित ध्वनि से सम्पूर्ण, वर्गों के स्पष्ट उच्चारण सहित तथा उचित स्थान पर विश्रामयुक्त होता था ३ इस प्रकार आचार्य राजशेखर ने विभिन्न
स्थानों के काव्यपाठ के दोषों का ही नहीं, उनके गुणों का भी सम्यक निरीक्षण किया था।
1 नातिस्पष्टो न चाश्लिष्टो न रूक्षो नातिकोमल:। न मन्द्रो नातितारश्च पाठी गौडेषु वाडवः।।
काव्यमीमांसा - (सप्तम अध्याय) 2 आह स्मब्रह्मन्विज्ञापयामि त्वां स्वाधिकारजिहासया। गौडस्त्यजतु वा गाथामन्या वाऽस्तु सरस्वती॥
काव्यमीमांसा - (सप्तम अध्याय) 3 मार्गानुगेन निनदेन निधिर्गुणानाम् सम्पूर्णवर्णरचनो यतिभिर्विभक्तः।
पाञ्चालमण्डलभुवां सुभगः कवीनाम् श्रोत्रे मधु क्षरति किञ्चन काव्यपाठः॥ काव्यमीमांसा - (सप्तम अध्याय)