Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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एवम् शब्द का केवल वर्षा में ही वर्णन, तथा सामान्यत: माणिक्य के लाल, पुष्पों के श्वेत तथा मेघों के
कष्ण वर्ण का वर्णन करना आदि हैं।
आचार्य राजशेखर, हेमचन्द्र तथा देवेश्वर के काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में प्रायः इस सभी कविसमयों
का उल्लेख है। कुछ को छोड़कर शेप सभी केशवमिश्र तथा विश्वनाथ के काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में भी उल्लिखित हैं।
काव्य में वर्णित इन काव्यशास्त्रीय आचार्यों ने काव्य में कुछ अन्य कविसमयों का भी समान
रूप से उल्लेख किया है यथा कृष्ण और नील, कृष्ण और हरित, कृष्ण और श्याम, पीत और रक्त तथा शुक्ल ओर गौरवर्णों का समान रूप से वर्णन, नेत्रों का श्वेत, श्याम, कृष्ण और मिश्र सभी वर्गों में उल्लेख, क्षीर और क्षार समुद्र की एकता, सागर और महासमुद्र की एकता, प्रताप में रक्तता तथा उष्णता का वर्णन, वर्षाकाल में हंसों के मानसरोवर चले जाने का वर्णन, सभी जलों में सेवाल का पाया जाना आदि।
आचार्य केशवमिश्र तथा विश्वनाथ वृक्षदोहद को भी कविसमय के रूप में स्वीकार करते हैं। स्त्रियों के चरणाघात, मुखसिंचन तथा आलिंगन से कुछ वृक्षों में पुष्पोत्पत्ति को वृक्षदोहद कहा गया है। वृक्षदोहद रूप कविसमय का उल्लेख आचार्य राजशेखर ने नहीं किया है।
कविसमय का अपने काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में विवेचन करने वाले आचार्यों ने स्वर्ण्य तथा
पातालीय कविसमयों का भी समान रूप से उल्लेख किया है। स्वर्ग्य कविसमयों के अन्तर्गत चन्द्रमा में शश और हरिण की एकता, कामध्वज में मकर और मत्स्य की एकता, अत्रि के नेत्र से उत्पन्न तथा समुद्र से उत्पन्न चन्द्रमा की एकता, बहुकाल से जन्म होने पर भी शिवचन्द्र की बालता, काम की मूर्तता, अमूर्तता, द्वादश आदित्यों की एकता, नारायण और माधव की एकता, दामोदर, शेष और कूर्म आदि में एकता, कमला और सम्पदा में एकता आदि हैं। पातालीय कविसमयों में नाग और सर्प की एकता, दैत्य,
दानव और असुरों की एकता उल्लिखित है।