Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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अहमदाबाद में भगवत्ती सूत्र का व्याख्यान किया। लोगों को प्रभु पूजा में स्थिर किये।
अहमदाबाद में श्रीशातिनाथजा की पल में सहस्रकूट जिन बिब की प्रतिष्ठा की। १७७६ में खभात में चौमासा किया । सिद्धाचल पर जीर्णोद्धार का कारखाना खुलवाया । प्रतिष्टित श्रावकों ने ८१८२-८३ मे श्रीमान के सदुपदेश से चतुर सलावटों से सिद्धाचन पर जीर्णोद्धार करवाया । १७८८ में श्रीमान के गुरुदेव श्री दीपचन्द्रची पाठक का स्वर्गवास हुआ । श्रहमदाबाद के सूबा श्रीरत्नचन्द्रमडारी की प्रार्थना से संग मिटाया। विरोधी राजा के साथ युद्ध मे भडारीजी ने गुरु के आशीर्वाद से विजय प्राप्त की। धोलका में एक योगी ने श्रीमान से जनदर्शन पाया । जामनगर में जिन पूजा विरोधियों से विजय पाई। पडधरी के ठाकुर को धमनिष्ठ बनाया । राणाबाव के राजा का भगंदर रोग आपके पाशीर्वाद से शांत हो गया । भावनगर के महाराजा को आपने सत्संग से धर्मानुरागी बनाया। पालीताना मे प्लेग को शान्त किया । लीम्बडी, ध्रांगध्रा और चूहा में प्रभु प्रतिमा की आपने प्रतिष्टाएं करवाई।
श्रीमान देवचन्द्रजी महाराज के शिष्य मनरूपजी एव न्याय शास्त्र के पाठक पडित विजयचद्रजी थे । मनरूपजी के शिष्य वक्तूजी और रामचन्द्रजी थे । सं० १८१२ में अहमदाबाद मैं गच्छ नायक प्राचाय ने आपकी अद्भुत प्रात्म शक्ति अनुपम पाण्डित्य-सफल उपदेककर विधि को देखकर बड़ेस मारोह