Book Title: Veer Vikramaditya
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 393
________________ चुराया है वह सारा माल मेरे पास सुरक्षित है। वह सारा माल राजभवन में भेज दूंगा, जिससे कि वह मूल स्वामी को प्राप्त हो सके। मैं निर्धारित सातवें दिन राजसभा में आऊंगा और आपने एक सती-साध्वी नारी के साथ जो अन्याय किया है, उसका प्रमाण भी साथ लाऊंगा। फिर क्या करना है और क्या नहीं करना है, यह आप पर निर्भर होगा। मुझे प्रायश्चित्त देने का अधिकार नहीं है। इसकी स्पष्टता राजसभा में हो जाएगी। उसी दिन एक सती नारी के आंसू सूखेंगे और मुख कमल की भांति खिल उठेगा। मुझे आपके दर्शनों का लाभ मिलेगा और साथही-साथ मेरा कर्तव्य भी पूरा हो जाएगा-आपका सर्वहर!' संदेश सुनकर तीनों रानियों का चेहरा खिल उठा। वीर विक्रम भी प्रसन्नता से झूम उठे। कमला रानी ने कहा- 'स्वामी! सर्वहर कौन होगा, यह कल्पना करना भी दुष्कर है। किन्तु उसके हृदय में आपके प्रति अत्यन्त आदर है, यह इस संदेश से स्पष्ट है।' ___'उसकी भाषा भी संस्कारित है। इससे पूर्व के पत्रों में वह चुनौतियां देता था, फिर भी भाषा में नम्रता थी। प्रिये! मेरी स्मृति को ठीक करने के लिए सर्वहर ने चोरियां की हैं। किन्तु सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि मेरे हाथ से कभी सती स्त्री का अपमान या अन्याय नहीं हुआ, फिर भी वह बार-बार उसी बात को दोहराता है। विक्रम ने मुस्कराते हुए कहा।। 'स्वामीनाथ! कभी-कभी छोटी-छोटी बातों की भी विस्मृति हो जाती है। अब वह निर्धारित दिन सामने आने ही वाला है। उस दिन सारी स्पष्टता हो जाएगी।' सारी नगरी में सर्वहर के प्रकट होने की बात फैल गई। सभी के हृदय उत्कंठित हो रहे थे सर्वहर को देखने के लिए। सभी उस दिन की आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे थे। वीर विक्रम ने विशाल मंडप तैयार करवाया। सर्वहर-रूपी देवकुमार निश्चिंत होकर अपने निवासस्थान पर आराम कर रहा था। चपलसेना भी सर्वहर को देखने के लिए आतुर हो रही थी। जयसेन के चले जाने पर उसका जीवन ही नीरस हो गया था। ७०. उल्लास आज स्वर्णिम सूर्य उदित हुआ। अवंती नगरी के नागरिक अपने-अपने समवयस्कों की टोली बनाकर राजभवन में नवनिर्मित मंडप की ओर आने लगे। ३८६ वीर विक्रमादित्य

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