Book Title: Updesh Saptati
Author(s): Punyakirtivijay
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 11
________________ ।। अर्हम् ।। ।। टीण्टोइमण्डनश्रीमुहरीपार्श्वनाथाय नमः ।। ।। श्रीमत्सोमधर्मगणिविरचिता उपदेशसप्ततिका ।। श्रीसोमसुन्दरगुरूज्वलकीर्तिपूरः, श्रीवर्द्धमानजिन एष शिवाय वः स्तात् । भव्या भवन्ति सुखिनो यदुदाहृतं श्रीचारित्ररत्नममलं परिपालयन्तः ।।१।। श्रीरत्नशेखरगुरुप्रवरा जयन्तु, नैकक्षमाधरनिषेव्यपदारविन्दाः । एदंयुगीनमुनिषु प्रवरक्रियेषु, श्रीसार्वभौमपदवीं दधतेऽधुना ये ।।२।। कथाप्रबन्धादिषु भूरिविस्तरे-ध्वनादरं ये दधतेऽल्पमेधसः । हिताय तेषामुपदेशसप्ततिः, प्रारभ्यते सर्वजनोपयोगिनी ।।३।। सम्यक्त्वमूलं देवादि-तत्त्वत्रयमुदाहृतम् । तस्य स्वरूपं ज्ञातव्यं, सम्यग्ध्येयं च तत्रिधा ।।४।। देवतत्त्वे गुरौ तत्त्वे, धर्मतत्त्वे तृतीयके । द्वावेको द्वौ च वक्ष्यन्ते-ऽधिकारा अत्र पञ्च तु ।।५।। २ उपदेश सप्तति

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