Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरिअं बारहमो परिच्छेओ 01 // छह किं अन्नमंतेण ? // 100 // रोहगसंजुत्ती उण कीरउ गामावि तस्स जे मग्गे। ते उर्वसंतु खिप्पं तिणघासाई य डझंतु // // 101 / / टैंकिजउ कूबाई कुजलाई सरोवराई कीरंतु / पसरनिवारणहेउं ससाहणं तत्थ वयउत्ति // 102 / / इय देवि ! मंतिवयणं कारिय सम्बंपि आगओ एत्थ। पबलत्तणओ सत्तुस्स तहवि चिंताउरो जाओ॥१०३।। अह हंसिणि ! जा कइवि हु सुहेण वचंति तत्थ | दिवसाई / ता अनदिणे नयरं पवेढियं सत्तुसिनाए // 104 // तओ। पिहिआई गोउराई जलेण परिपूरियाओ परिहाओ / संनद्धबद्धकवया पइकविसीसं ठिया जोही // 105 // संवा(चा)रिमजंताई पउणीकीरंति, विविहसत्थाई / तिक्खालिजंति तहा कीरइ सुहडाण सम्माणो॥१०६।। पइदियह दिअंति य उकाला सत्तुसिन्नमइगम्म / निवडंति सुहडकरितुरयनरवरा उभयपक्खेवि // 107 // संसइया सामंता नायरया आउला दढं जाया। किंकायव्यविमूढा जाया तह मंतिणो अम्ह / / 108 / / भीया कायरपुरिसा संगरकरणम्मि उर्दुरा सुहडा। | साहसधणो य ताओ संधीरइ सुमइवयणेण // 109 // एवं हंसिणि! जाए समंतओ आउलम्मि नयरम्मि / अह अन्नदिणे अहयं पासुत्ता हम्मैियतलम्मि // 110 // रयणीए केणावि हु"हीरतं अप्पयं पुलोइत्ता / पडिबुद्धा भयभीया विलविउमेवं समाढत्ता // 11 / / हा अम्मि! ताय ! कोवि हु देवो वा नहयरो व मं हरइ / धावह धावह सुहडा! इमाओ मेल्लावह ममंति॥११२।। एमाई विलव| 1 रोधकसंयुक्तिः प्रतिरोधसामग्री। 2 उद्वसन्तु-निर्वासान् कुर्वन्तु / 3 छाद्यताम् / 4 ससाधन=सकटकम्। 5 प्रतिकपिशीर्षम् / 6 जोहा=योधाः / 7 ती णीक्रियन्ते / 8 सुभटः योधः / 9 संशयितः शङ्कापन्नः। 10 संगर-युद्धम् / 11 उद्धरः उद्भटः / 12 हhतले प्रासादतले। 13 हियमाणाम् / 14 मेल्लाबह-मोचयत। // 10 // For Private and Personal Use Only

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