Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आरोविऊण बहुसो आकड्डिजति रज्जूहिं // 43 // कढकढकटेंतकुंभीसुतेहिं पच्चंति निद्दयमणेहिं / पाईजंति जलंतं तंबं तिसियत्ति जपंता॥४४॥ ससरीरसमुक्कत्तियमंसं छुहियाण अग्गिसंकासं / काउं छुब्भ वयणे नेरइयाणं अनाहाणं // 45 // पूइवसरुहिरपुन्नं वेयरणिं निम्मयं विउवित्ता / वोलिजति रसंता हा ! हा! मायत्ति जपंता // 46 / / छायत्थी संपत्ता असिपत्तवणम्मि निसियपत्तेहिं / छिज्जति विलवमाणा असितोमरकुंतरूवेहिं // 47 // तत्थ कयस्थिजंता रक्खह सरणागयत्ति जपता / सुमरावियपुबभवा गाढयरं तेहिं हम्मंति // 48 // किं बहुणा / अच्छिनिमीलियमित्तं नत्थि सुहं दुक्खमेव संतत्तं / नरए नेरईयाणं अहोनिसिं पञ्चमाणाणं // 49 // एवं पभूयकालं | अणुहविउ दारुणाई दुक्खाई। कहवि हु उव्वट्टित्ता जायंति तिरिक्खजोणीसु // 50 // तत्थवि छुहापिवासुण्हसीयवहबंधरोयवियणाहि / भारारोवणनत्थणदमणकुसतोत्तयाईहिं // 51 // अवरोप्परभक्खणताडणाइदुक्खाई विविहरूवाई / पच्चणुभवंति बहुसो पुणो पुणो विविहजोणीसु // 52 // तत्तो लहंति जइ कहवि दुल्लहं माणुसत्तणं जीवा / तत्थवि जायइ दुक्खं सारीरं माणसं विविहं // 53 // दारिदगरुयमोग्गरनिवायदुहिया करेंति अन्नेसिं / नीयाणवि आणत्तिं कदन्नलवपावणिच्छाए ॥५४॥न गणिति रोइदियहं बञ्चति सुदरविसम-| देसंपि / पविसंति विसमविवरं लंघति य जलनिहिं दीणा // 55 // धणपावणवंछाए दुक्खं न गणिति लोहगहगहिया / दिप्पंतकुंतपउरे पविसंति य भीमसंगामे // 56 / / इट्ठजणवियोगाओ अणिसंपावणे य जं दुक्खं / विविहावयाहि य तहा को पुण तं वनिउं तरइ ? तैः परमाधार्मिकः / 2 पय्यन्ते / 3 तानम् / 4 क्षुधितानाम् / 5 निम्नगा-नदी / 6 विकुर्य-विकृत्य / 7 गम्यन्ते / 8 सुमराविर्य स्मारितम् / 9 संतत्त-संततम् निरन्तरम् / 1. अवरोष्परं-परस्परम् / 11 नीचानाम् / 12 रात्रिदिवसम् / For Private and Personal Use Only

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