Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी सोलहमो परिच्छेओ चरिअं // 139 // * *** धणदेवजुओ अहं तु पेयवणे / भयवं ! गओ पहाए पासे मुणिमयरकेउस्स // 219 / / तहियं च न सो दिट्ठो दिट्ठा य चिया फुरंतइंगाला / गंधोदगकुसुमवासं च निवडियं दीसए तत्थ // 220 // दुगुणाणियसंवेगो पभणइ सूरीवि नायपरमत्थो / दुक्खत्तो हिंडतो | इहागओ मयणवेगो सो॥२२१॥ पेयवणे पडिमत्थं पियरं दद्दूण चिंतए पावो / इण्हि करेमि सहलं नियजम्म वेरियं तुं // 222 // | दारुयभरियं सगडं भग्गं मोत्तूण तत्थ सागडिओ / उस्सूरंति पैइट्ठो वसभे चित्तूण नयरीए // 223 // जाए तमंधयारे तहि ओ क द्वेहिं तेण पावेण / पच्छाइऊण दड्डो चीयाजलणेण सो साहू // 224 // देहं स दहइ सिंही सुकज्झाणेण सोवि कम्माई। अविचल| चित्तो भयवं अंतगडो केवली जाओ // 225 // एवं समुल्लवंतस्स सरिणो उल्लसंतविरियस्स | खविए कम्मचउक्के उप्पन्नं केवलं नाणं / / 226 // तह अमरकेउमुणिणो धणदेवजइस्स कणगमालाए / कमलावइसुरसुंदरिपियंगुवरमंजरीए य॥२२७।। सुहभावाणमिमाण उप्पणं केवलं वरं नाणं / देवेहिं कया | महिमा मोक्ख पत्ताणि कालेण // 228 / / युग्मम् // पावेण मयणवेगो भमिही संसारसायरमणतं / ता भो भव्वा! उज्झह रागद्दोसे | महासत्तू // 229 // इत्थ य कहा समप्पइ सुरसुंदरिनामिया पुरा भणिया। रागद्दोसविमुकं पणमह भत्तीइ जिणइंदं // 230 // निच्चपलोयणनिरया तग्गयचित्ता विमुकवावारा / अत्थप्पयाणरहिया जासिं वयणपि न लहंति।।२३१।। नियत्थपयाणेवि हु रसरहियाओ न दिति सम्भावं / परमत्थविरहियाणं अन्नत्थनिबद्धचित्ताओ // 232 // तासु वरवेसियासुब सुवन्नरयणुच्छलंतसोहासु / बहल 1 स्फुरदङ्गारा चिता। 2 शाकटिकः शकटस्वामी / 3 प्रविष्टः / 4 तमाया रात्र्या अन्धकारे / 5 शिखी अग्निः / (धनदेवयतेः / / अर्थः पदार्थः, धनं च / 8 वेसियाब्वेश्या / 9 सुवर्णाः शोभनाक्षराणि, सुवर्ण-हेम च; रयणा-रचना, रत्नानि च / ** * // 139 // *** For Private and Personal Use Only

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