Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni
Publisher: 

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Page 237
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पलिओवमढिईओ सिवओ वेलंधराहिवई // 239 // पञ्चभिः कुलकम् // लवणसमुद्दे अनावि अत्थि सिवया ओ रायहाणी मे ||* | जोयणसहस्सबारसवित्थिण्णा सा समंतेण // 240 // सिवयाइ तीइ बहुसो अच्छामि अहं अणेयदेवीहिं / परियरिओ दिव्वसुहं मुंजतो तह दउभासे / / 241|| ता भद्द! तुह पसायाओ एरिसी पाविया मए रिद्धी / कल्लम्मि दउभासम्मि आगओ पव्वए अहयं // 242 // | ओहिनाणेण तुमं पत्तं दट्टण रयणदीवम्मि / आयाओ तुहदसणकंखी, भण जंमए किच॥२४३।। अबो ! जिणिंदधम्मस्स एरिसं | एत्तियस्सवि फलंति / ता कीस न गेण्हामो जिणदिक्खं इय विचिंतेंतो॥२४४॥ भणिओ पुणोवि देवेण होइ देवाण दंसणममोहं / तो भव पंउणो जेणाहमा बहुरयणसंजुत्तं // 245|| दिव्वविमाणारूढं नेमि तुमं हत्थिणाउरे नयरे / तत्थ य गयस्स हियइच्छियंपि | होही महाभाग ! // 246 // तिसृभिः विशेषकम् / / एवंति मए भणिए दिव्वविमाणं विउव्वियं सहसा / भूरिरयणोहसहिओ चडाविओ | तम्मि तेणाहं // 247 // रयणनिवहं तद्दीवत्थं अणेयपयारयं नरवर ! वरं घेत्तुं मझं समप्पिय सायरं / सिवगपहुणा सम्मं दिव्वे विमाणवरे ठिओ गैयपुरपुर तेणाणीओ खणेण तओ अहं // 248|| साहुधणेसरविरइयसुबोहगाहासमूहरम्माए / रागग्गिदोसविसहरपसमणजलमंतभूयाए // 249 // एसोवि परिसमप्पइ गयपुरपच्चागमोत्ति नामेण / सुरसुंदरीकहाए तेरसमो इह परिच्छेओ // 250 // // तेरहमो परिच्छेओ समत्तो। 1 प्रगुणः सज्जितः / 1 विउम्वियं-विकुचितम् / 3 गजपुरपुर-हस्तिनापुरनगरम् / For Private and Personal Use Only

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