Book Title: Satikachatvar Karmgrantha
Author(s): Chaturvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 268
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५९ ११ स्थित्या च बन्धनेन च | स्थेशभासपिसकसो वरः स्थादावसङ्ख्येयः स्वदारमात्रसन्तोषोऽस्वयं भयपरीणामः . से किं तं मइनाणं? से कि तं वंजणुग्गहे? से कि तं समए ? समसे किं तं सुयनिस्सियं मइ. से णं पल्ले सिद्धत्थयाणं से गं पुवामेव सन्निस्स से य सम्मत्ते पसत्थससेलेसी पडिवना सोइंदिओवलद्धी सो चेव नणूवसमो सो तस्स विसुद्धयरो स्त्रीपुंसानङ्गसेवोग्राः स्थास्नायुधिव्याधिहनिस्थितिपाकविशेषस्तस्य १२१ हंसलिवी भूयलिवी हत्था पाया हवइ पसाहा काऊ १३० हस्सक्खराई मज्झेण हिंसानृतस्तेयाब्रह्म५ हिमगिरिनिग्गयपुवा११६ हीयमाणं पुवावत्थाओ ७७-१६३ द्वितीयं परिशिष्टम् । कर्मग्रन्थटीकान्तरुद्धृतानां ग्रन्थनाम्नां सूची। अनुयोगद्वार १५२ २२ अनुयोगद्वारचूर्णि अनुयोगद्वारटीका अनुयोगद्वारलघुवृत्ति अनुयोगद्वारसूत्र अनेकान्तजयपताका आगम आचाराङ्गटीका आर्ष आवश्यकचूर्णि आवश्यकटीका कर्मप्रकृति कर्मप्रकृतिचूर्णि कर्मविपाक कर्मस्तव १ १६९-१७१-१९४- 1 जीतकल्पभाष्य २०२-२०९-२१३ दिनकृत्यटीका २०५ धर्मसारमूलटीका १५७-२०५ नन्दिचूर्णि नन्दिवृत्ति १६९-२०१ नन्द्यध्ययन ७-१२-१९ ५९ नन्यध्ययनचूर्णि ७४-११५-११७-१४२ पञ्चमाङ्ग १४८ पञ्चसङ्ग्रह १४३ पञ्चसङ्ग्रहमूलटीका १४६ ७६ | प्रज्ञप्तिसूत्र १६५-१६६ ६९-१३९ प्रज्ञापना १४४-१५९-१६१-१६३-१६४-१७३ ७५-१३७ प्रज्ञापनाटीका १८१-१८२ १२४ | प्राकृतलक्षण ४-१८-४६-५८-८९-१४७ बृहच्छतकबृहचूर्णि ३३-१४१-१८६ १०१-१०२-१०३-१०४ | बृहत्कर्मप्रकृति १०५-१०६-१०७-१०८- बृहत्कर्मविपाक २६-५३ १०९-११०-१११-१८४ | बृहत्कर्मस्तवभाष्य ८५-९२ १०२ बृहत्कर्मस्तवसूत्र ९२ ७४ | बृहद्वन्धवामित्व ९८-१११ कर्मतवटीका कल्पभाष्य For Private and Personal Use Only

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