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१६८-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
छेद के द्वारा अलग कर डाले । यह कहने को तो आवश्यकता ही नहीं कि मिट्टी, मिट्टी है और सोना, सोना है । लेकिन मिट्टी में मिले सोने को सच्चा सुवर्णकार ही अलग कर सकता है । इसी प्रकार धर्म, धर्म है और धर्मभ्रम, धर्मभ्रम है । मगर धर्मभ्रम मे मिले धर्म को शोधने का कार्य सच्चे बमशोधक का है । घम को जब धर्मभ्रम से पृथक कर दिया जायगा तभी वह अपने उज्ज्वल रूप में दिखाई देगा और तभी उसकी सच्ची कीमत आकी जा सकेगी ।
जीवन मे धर्म का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है, यहा तक कि धर्म के बिना जीवन-व्यवहार भी नही चल सकता । जो लोग धर्म की आवश्यकता स्वीकार नही करने, उन्हे भी जीवन में धर्म का प्राश्रय लेना ही पड़ता है, क्योकि धर्म का आश्रय लिये बिना जीवन- व्यबहार निभ ही नहीं सकता है। उदाहरणार्थ-~-पाच और पाच दस होते है, यह सत्य है और सत्य धर्म है । जिन्हे धर्म आवश्यक नहीं मालूम होता उन्हे यह सत्य भी अस्वीकार करना होगा । मगर क्या इसे स्वीकार किये बिना काम चल सकता है ? मान लीजिए आपको कडाके की भूख लगी है । आपकी माता ने भोजन करने के लिए कहा .। आप धर्म-विरोधी होने के कारण कहेगे-'नहीं, मुझे भूख नही लगी है। ' तो कब तक जीवन निभ सकेगा? धर्म के अभाव मे एक श्वास लेना भी कठिन है । ऐसा होने पर भी धर्म की जो निन्दा की जाती है, उसका एक कारण है-धर्म के नाम पर होने वाली ठगाई ।
बहुत से लोग धर्म के नाम पर दूसरो को ठगते हैं, इसी कारण धर्मनिंदको को धर्म की निन्दा करने का मौका मिलता है । अतएव हम लोगो को (साधु-आर्यायो को) सदैव