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१७४-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
अर्जुन माली महापापी और अधम था, लेकिन सुदर्शन सेठ ने उसका सुधार किया । शास्त्र मे इस बात का तो कोई उल्लेख नहीं मिलता कि सुदर्शन मेठ ने अपना कल्याण किस प्रकार और किस समय किया, लेकिन अर्जुन माली के विपय का उल्लेख शास्त्र मे अवश्य पाया जाता है। उसने उसी भव मे अपनी प्रात्मा का कल्याण साध लिया था । सुदर्शन मेठ ने अर्जुन माली के विषय में विचार किया . यह भान भूला हुआ है और इसी कारण दूसरो को हत्या करता है । ऐमे का सुधार करना हो तो मेरा धर्म है । इस प्रकार विचार कर अर्जुन माली का सुधारने के लिए आर ध्यानस्थ होकर बैठ गया । अर्जुन माली जब मुद्गर लेकर मारने आया तो सेठ ने विचार किया-'अगर मुझ मे सच्ची धर्मनिष्ठा हो तो अर्जुन के प्रति लेगमात्र भी द्वप उत्पन्न न हो ।' इस प्रकार की उच्च भावना करके और अपने सर्वस्व का त्याग करके भी अर्जुन माली जैसे अधम का उसने उद्धार किया । हालाकि सुदर्शन का सर्वस्व नष्ट नही हो गया, फिर भी उसने अपनी मोर मे तो त्याग कर ही दिया था । जिम सुदर्शन ने अर्जुन मालो जैसे अधम का उद्वार किया था, उसने गृहस्य होते हुए भी परमात्मा से यही प्रार्थना की थी कि - 'हे प्रभो । मेरे अन्त करण मे अर्जुन के प्रति तनिक भी द्वेप उत्पन्न न हो ।' इसी सदभावना के प्रताप से अर्जुन विनाशक के बदले उसका सेवक बन गया। मुदर्शन की सद्भावना ने अर्जुन माली जैसे नरघातक को भी सब का रक्षक बना दिया । क्या सदभावना की यह विजय साधारण है ?
जो सद्भावना आसुरी प्रकृति को भी देवी बना सकती