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१६४ - सम्यक्त्वंपराक्रम (१)
उपस्थित हो सकती है, परन्तु परमात्मा से मिलने की इच्छा होने पर कर्म भी दूर भाग जाते है । अतएव हृदय मे परमात्मा से मिलने का शौक पैदा करना चाहिए ।
अगर है शौक मिलने का तो हरदम लौ लगाता जा ।
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परमात्मा से मिलने का शौक पैदा होने पर परमात्मा को मिलन अवश्य होता है । परमात्मा से मिलने का शौक किस प्रकार पैदा हो सकता है, इस विषय मे कहा गया है कि पर-पदार्थों का त्याग कर दो जो तुम्हारी आज्ञा शिरोधार्य नही करते वह सब पर - पदार्थ है । जब तक पर-पदार्थों के प्रति ममता का भाव विद्यमान रहता है तब तक परमात्मा से मिलने का शौक पैदा नही होता और जब तक परमात्मा से मिलने का शौक ही उत्पन्न नही होता तब तक परमात्मा से भेट हो ही कैसे सकती है ? तुम शरीर पर ममत्व रखते हो परन्तु शरीर तुम्हारी आज्ञा के अधीन है? इस शरीर के पीछे - कैसे-कैसे दुख लगे हुए हैं ? क्या तुम वह दुख चाहते हो ? नही। तो फिर क्यो शरीर पर ममता रखते हो ? शरीर पर ममता रखने के कारण ही शारीरिक दुख उठाने पडते है | शरीर के पीछे कैसे - कैसे दुख लगे. है, इस बात का वर्णन करते हुए कहा गया है -
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जम्मदुक्खं जरादुक्खं रोगा य मरणाणि य । ग्रहो दुक्खो हि संसारो जत्थ किच्चइ जंतुणो ॥ उत्तराध्ययन, १ १६
अर्थात् - जन्म दुःखरूप है जरा दुखरूप है, रोग तथा मरण दुखरूप है । अरे यह ससार ही दुखरूप है, जहाँ जीव दुख पाते हैं ।
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