Book Title: Samyaktva Parakram 01
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

View full book text
Previous | Next

Page 238
________________ २२२-सम्यक्त्वपराक्रम (१) लोग नाटक मे राम और हरिश्चन्द्र का पार्ट खेलते है, मगर इनके हृदय की भावना कितनी नीच है । क्या इनकी नीच भावना का प्रभाव दर्शको पर नही पड़ता होगा ? पडे बिना कैसे रह सकता है ? इसी प्रकार नाटकीय गुरु का प्रभाव क्या शिष्य पर नही पडता होगा ? जो अपने अन्त करण में ज्ञान को स्थान नही देता, जो ज्ञान के अनुसार आचरण नहीं करता, वह पुरुष शास्त्र के अनुसार गुरुपद का अधिकारो नही है । महात्माओ ने ऐसे लोगो की, जो कहते कुछ और तथा करते कुछ और है, निन्दा की है । आवश्यक नियुक्ति में कहा है - कि पुच्छसि साहूणं, तवं च नियम च संजमं च । तो करिस्ससि वदिय एव मे पुच्छिो साहू ।। एक मनुष्य साधु को देख रहा था, मगर उसने वन्दन नही किया । किसी ने उससे कहा साधु को देखता क्या है ? क्या उनका तप देखता है, नियम देखता है, सयम देखता है या ब्रह्मचर्य देखता है ? आकृति देखते से यह बात समझो जा सकती है कि किसी मे अमुक गुण हैं या नही ? वृक्ष की जड दिखाई नही देती, फिर भी ऊपर से उसे हराभरा देखकर समझा जा सकता है कि इसकी जड अच्छी है । इसी प्रकार आकृति देखने मात्र से यह भी जाना जा सकता है कि इसमे तप, नियम, सयम, ब्रह्मचर्य आदि गुण हैं या नही ? उस साधु को खडा-खडा देखने वाला विचार करता है कि मैं इन्हे अपना गुरु बनाना चाहता हू । अतएव मैं

Loading...

Page Navigation
1 ... 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275