Book Title: Samyaktva Parakram 01
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 256
________________ २३८ - सम्यक्पराम ( १ ) 1 कपडा लादने की आवश्यकता नही है । मगर आज शरीर पर तीन से कम कपडा पहनना फैशन के खिलाफ माना जाता है । लोग यह नही समझते कि अधिक कपड़ा पहनना शरीर - स्वास्थ्य को हानि पहुचता है। अधिक वस्त्र धारण करके शरीर स्वास्थ्य को हानि पहुचाना ही क्या फैशन है ? यह फैशन नही, वरन् शरीर बिगाडने के लिए एक प्रकार का 'लेसन' 'Lesson ) है | फेशन - लेगन का पाठ न पढ़ मे ही कल्याण है । 1 - कहने का आशय यह है कि जिस प्रकार घर के द्वर और खिड़किया चन्द कर रखने से घर मे हवा प्रकाश का आना रुक जाता है, उसी प्रकार आसातना दोष रूपी द्वारे बन्द कर देने से, आत्मा मे सम्यक्ज्ञान, दर्शन और चारित्रं रूपी लक्ष्मी का प्रवेश नही होता । आत्मा जब आसातना दोष से रहित होकर विनयशील एव अनासातनाशील बन जाता है तभी उसे दर्शन, ज्ञान, चारित्र की प्राप्ति होती है 7 1 1 I सीने मे रत्न जडने के लिए सोने को कुन्दन बनाया जाता है अर्थात् विकार होने के कारण सोने मे जो कडकप होता है, उसे अग्नि द्वारा दूर करके सोना, नरम बनाया जाता है, उसी प्रकार आत्मा मे सम्यग्ज्ञानं, दर्शन और चारित्रं रूप तीर्न रत्नो को जड़ने के लिए आत्मा को विनयशील और अनासीतनाशील बनाने की आवश्यकता है । जब तक सोने का विकार हटाकर उसमें स्वाभाविक नरमाई न आये, तब तक सोने मे रत्न को पकड़ रखने की शक्ति नही आ सकती । यद्यपि कोई, महापुरुष ही आत्मा में सम्यग्ज्ञान, दर्शन और चास्त्रि रूपी रत्न जड़ता है, परन्तु

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