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साध्वारत्न पुष्पव
आभनन्दन ग्रन्थ
का अवसर किशनगढ़ में प्राप्त हुआ । आपके सरल निष्कपट स्वभाव से मैं अत्यधिक प्रभावित हुआ । ज्ञान होते हुए भी आप में अभिमान नहीं है ।
आपका नाम पुष्प है: पुष्प की सदा यह विशेषता रही है कि वह खिलता रहता है। चाहे जो भी उसके पास जाता है वह उसे सुगंध प्रदान करता है । कभी भी उसमें से दुर्गन्ध नहीं आती वैसे ही आपका जीवन है । उसमें सौरभ ही सौरभ है । जो भी उनके पास जाता है उन्हें वे सद्गुणों की सौरभ बांटते रहते हैं ।
मैंने महासतीजी के साथ ज्ञान चर्चा भी की है उस ज्ञान चर्चा में मैंने पाया कि महासतीजी का आगम और दार्शनिक साहित्य का ज्ञान बहुत ही गहरा है । वे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर बहुत ही शान्ति से प्रदान करती हैं । और उनसे समाधान
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| | गुरुणी जी; मेरा शत शत प्रणाम | |
महासती पुष्पवतीजी का व्यक्तित्व असीम और अपरिमित है, उनकी दुग्ध-धवल संयम साधना को निहारकर किस श्रद्धालु का सिर नत नहीं होता है । उनके मधुरिमापूर्ण व्यक्तित्व से कौन प्रभावित नहीं होता । ये ज्ञान की चलती-फिरती प्याऊ हैं जो भी उनके सम्पर्क में आता है, वे उन्मुक्त मन से ज्ञान दान प्रदान करती हैं, उनका गन्तव्य है कि ज्ञान को स्वयं सीखो और दूसरों को सिखाते रहो ।
सुनकर बहुत ही प्रसन्नता हुई और मन में सात्विक गौरव भी हुआ ।
सन्त सम्मेलन के पावन प्रसंग पर महासतीजी महाराष्ट्र में पधारी । सम्मेलन के पूर्व नासिक, चाकण, तलेगांव ढमढेरा आदि अनेक स्थलों पर दर्शनों का सौभाग्य मिला। महासतीजी हमारी प्रार्थना को सन्मान देकर घोड़नदी भी पधारीं । और वहाँ पर कुछ दिन विराजी महासतीजी के स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर समाज उनका अभिनन्दन कर रहा है और इस अवसर पर उन्हें एक अभिनन्दन ग्रन्थ भी भेंट किया जा रहा है, आशा है ग्रन्थ में उनके व्यक्तित्व की पूर्ण झलक मिलेगी । महासतीजी शतायु हों, और ग्रन्थ सभी के लिए उपयोगी हो ।
जो सीखो, किसी को सिखाते चलो । दिए से दिए को, जलाते चलो ॥ आपका पवित्र जीवन एक प्रकाश स्तंभ की तरह है जो जन-जन को मार्गप्रदर्शन करता है । आपकी वाणी में तेज है, ओज है और उसमें चिन्तन का गाम्भीर्य है । जिधर भी आप पधारती हैं उधर श्रद्धालुओं में श्रद्धा का सागर उमड़ पड़ता है ।
- राजेन्द्र कुमार मेहता; (सूरत)
मैंने अनेकों बार आपश्री के दर्शन किए, सेवा में रहने का भी अवसर मिला । अनेक बार आपसे विचार चर्चा भी हुई, उन सभी में मैंने पाया कि आपके जीवन में सर्वत्र मधुरता है । आपकी वाणी मधुर है, आपका व्यवहार मधुर हैं और वार्तालाप ' में वह मधुरता सहज रूप से प्रगट होती है ।
मैं तपोमूर्ति सद्गुरुणीजी महासती पुष्पवतीका अभिनन्दन करते हुए बहुत ही प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। मैं चाहूँगा कि उनका हार्दिक आशीर्वाद सदा हमें मिलता रहे जिससे हम आध्यात्मिक पथ पर निरन्तर बढ़ते रहें ।
पुष्प सूक्ति कलियां
[ असत्य को जन जीवन में धर्म या सिद्धान्त का रूप देकर प्रतिष्ठित करना सबसे भयंकर असत्य है ।
गुरुणी जी! शत-शत प्रणाम
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